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________________ चतुर्थ अध्ययन - प्रतिक्रमण] 69} बाईसवें बोले-बाईस परीषह-1. क्षुधा 2. तृषा, 3. शीत, 4. उष्ण, 5. डाँस-मच्छर, 6. अचेल, 7. अरति, 8. स्त्री, 9. चर्या, 10. निषद्या, 11. शय्या, 12. आक्रोश, 13. वध, 14. याचना, 15. अलाभ, 16. रोग, 17. तृण स्पर्श, 18. जल्ल, 19. सत्कार-पुरस्कार, 20. प्रज्ञा, 21. अज्ञान और 22. दर्शन परीषह। तेईसवें बोले-सूत्रकृतांग के 23 अध्ययन-प्रथम श्रुतस्कन्ध के 16 अध्ययन तो सोलहवें बोल की तरह, दूसरे श्रुतस्कन्ध के सात अध्ययन-1. पुण्डरीक कमल, 2. क्रियास्थान, 3. आहार परिज्ञा, 4. प्रत्याख्यान परिज्ञा, 5. अणगार सुत्त, 6. आर्द्रकुमार, 7. उदक पेढाल पुत्र । चौबीसवें बोले-चौबीस प्रकार के देवता-10 भवनपति, 8 वाण-व्यन्तर, 5 ज्योतिषी और 1 वैमानिक, ये कुल 24 हुए। पच्चीसवें बोले-पाँच महाव्रत की पच्चीस भावना-पहले महाव्रत की पाँच भावना-1. ईर्या समिति, 2. मन समिति, 3. वचन समिति, 4. एषणा समिति और 5. आदान भाण्ड मात्र निक्षेपणा समिति। दूसरे महाव्रत की पाँच भावना-1. बिना विचारे बोलना नहीं, 2. क्रोध के वश, 3. लोभ के वश, 4. भय के वश 5. हास्य के वश बोलना नहीं। तीसरे महाव्रत की पाँच भावना-1. निर्दोष स्थान माँग कर लेना, 2. तृण आदि माँग कर लेना, 3. स्थानक आदि सुधराना नहीं, 4. रत्नाधिक की आज्ञा से तथा आहार का संविभाग करके आहार करना, 5. उपाश्रय में रहे हुए सम्भोगी साधुओं से आज्ञा लेकर रहना तथा भोजन आदि करना। चौथे महाव्रत की पाँच भावना-1. स्त्री-पशु-नपुंसक सहित स्थान में नहीं रहना, 2. स्त्री सम्बन्धी काम-राग बढ़ाने वाली कथा-वार्ता नहीं करना 3. स्त्री के अंगोपांग राग दृष्टि से नहीं देखना, 4. पहले के भोगे हुए कामभोगों को याद नहीं करना, 5 प्रतिदिन सरस तथा बलवर्धक आहार नहीं करना। पाँचवें महाव्रत की पाँच भावना-1 शब्द, 2. रूप, 3. गंध, 4. रस, 5. स्पर्श, इनके अच्छे होने पर राग एवं बुरे होने पर द्वेष नहीं करना। छब्बीसवें बोले-छब्बीस उद्देशक-दशाश्रुतस्कन्ध के दस, बृहत्कल्प के छह, व्यवहार सूत्र के दस । (इनमें साधुओं के विधि-नियमों का कथन है)। सत्तावीसवें बोले-साधुजी के सत्ताईस गुण-पाँच महाव्रत पाले, पाँच इन्द्रिय जीते, चार कषाय टाले, भाव सत्य, करण सत्य, जोग सत्य, क्षमावन्त, वैराग्यवन्त, मनः समाधारणता, वचन समाधारणता, काय समाधारणता, ज्ञान सम्पन्न, दर्शन सम्पन्न, चारित्र सम्पन्न, वेदना सहिष्णुता और मारणान्तिक सहिष्णुता।
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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