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________________ चतुर्थ अध्ययन - प्रतिक्रमण] 67} इन सर्व प्रतिमाओं का काल कुछ कम आठ मास का है। 13. तेरहवें बोले तेरह क्रियास्थान-1. अर्थ दण्ड-स्वयं व परिवारादि के लिए हिंसादि करना। 2. अनर्थ दण्ड-निरर्थक व बिना प्रयोजन हिंसादि करना। 3. हिंसा दण्ड-संकल्प पूर्वक किसी प्राणी को मारना । 4. अकस्मात् दण्ड-बिना उपयोग सहसा जीव का घात हो जाना। 5. दृष्टि विपर्यास दण्ड-बुद्धि के विभ्रम से मित्र को शत्रु जानकर मार डालना। 6. मृषावाद दण्ड-असत्य भाषण करना । 7. अदत्तादान दण्ड- चोरी करना, बिना दी हुई वस्तु को ग्रहण करना । 8. अध्यात्म दण्ड-बाहरी निमित्त के बिना मन में दुष्ट विचार करना । (अध्यात्म का अर्थ यहाँ मन है)। 9. मान दण्ड-गर्व करना । 10. मित्र दण्ड-मातापिता और मित्र वर्ग को अल्प अपराध पर भी अधिक दण्ड देना । 11. माया दण्ड-कपट करना । 12. लोभ दण्ड-लोभ करना । 13. ईर्यापथिक दण्ड-सयोगी वीतरागी को लगने वाली क्रिया। चौदहवें बोले चौदह भूतों के स्थान-1. सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त, 2. सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त, 3. बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, 4. बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त, 5. बेइन्द्रिय अपर्याप्त, 6. बेइन्द्रिय पर्याप्त, 7. तेइन्द्रिय अपर्याप्त, 8. तेइन्द्रिय पर्याप्त, 9. चौरेन्द्रिय अपर्याप्त, 10. चौरेन्द्रिय पर्याप्त, 11. असन्नी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त, 12. असन्नी पंचेन्द्रिय पर्याप्त, 13. सन्नी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त, 14. सन्नी पंचेन्द्रिय पर्याप्त। पन्द्रहवें बोले पन्द्रह परमाधामी देव-1. अम्ब, 2. अम्बरीष, 3. श्याम, 4.शबल, 5. रौद्र, 6. वैरुद्र (महारौद्र), 7. काल, 8. महाकाल, 9. असिपत्र, 10. धनुष, 11. कुम्भ, 12. बालुका, 13. वैतरणी, 14. खरस्वर, 15. महाघोष । सोलहवें बोले-सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम श्रत स्कन्ध के सोलह अध्ययन-1. स्व समय-पर समय, 2. वैदारिक (वैतालीय), 3. उपसर्ग परिज्ञा, 4. स्त्री परिज्ञा, 5. नरक विभक्ति, 6. वीर स्तुति, 7. कुशील परिभाषा, 8. वीर्याध्ययन, 9. धर्मध्यान 10. समाधि, 11. मोक्षमार्ग, 12. समवशरण, 13. यथातथ्य, 14. ग्रन्थ, 15. यमतिथि (आदानीय), 16. गाथा। सतरहवें बोले-सतरह प्रकार का संयम-1. पृथ्वीकाय संयम, 2. अप्काय संयम, 3. तेउकाय संयम, 4. वायुकाय संयम, 5. वनस्पतिकाय संयम, 6. बेइन्द्रिय संयम, 7. तेइन्द्रिय संयम, 8. चउरिन्द्रिय संयम, 9. पंचेन्द्रिय संयम, 10. अजीवकाय संयम, 11. प्रेक्षा संयम (मार्ग स्थण्डिल भूमि आदि देखकर प्रवृत्ति करना), 12. उपेक्षा संयम (उत्प्रेक्षा) (आज्ञानुसार शुभ क्रिया में प्रवृत्ति, अशुभ से निवृत्ति करना), 13. अपहृत्य (परिस्थापनिका) संयम-परठने योग्य वस्त्र, मल-मूत्र, संसक्त आहारादि को विधिपूर्वक परठना, 14. प्रमार्जना-भूमि, वस्त्र, पात्र का विधिपूर्वक प्रतिलेखन करना, 15. मन संयम, 16. वचन संयम, 17. काय संयम।
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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