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________________ [5] त्रिकरण ऐसे होता है सहज इफेक्ट में दखल नहीं, वही साहजिकता प्रश्नकर्ता : आपके अनुसार साहजिक अर्थात् क्या? दादाश्री : साहजिक अर्थात् मन-वचन-काया की जो क्रियाएँ हो रही हैं, उनमें दखल नहीं करना। यह संक्षेप में, एक ही वाक्य में बताया। इसमें कितना समझ में आया है ? यदि समझ में नहीं आया हो तो आगे दूसरा वाक्य रखें? मन-वचन-काया की जो क्रियाएँ हो रही हैं, उनमें दखल करने से साहजिकता खत्म हो गई है। जब 'मैं चंदूभाई हूँ', वह भान चला जाता है तब सहज होता है। साहजिक अर्थात् क्या? यह अंदर वाली मशीन जिस तरफ चलाए उसी तरफ चलते रहना, खुद की दखल नहीं। भीतर वाला जिस तरह से चलाए, उसी तरह से चलना। देह, देह का धर्म निभाता है, हमें अपना धर्म निभाना है। सब अपना-अपना धर्म निभाते हैं, उसे ज्ञान कहते हैं और सभी के धर्मों को 'मैं निभाता हूँ' ऐसा कहे, उसे अज्ञान कहते हैं। मन ऊपर-नीचे होता है, आगे-पीछे होता है, वह उसका स्वभाव ही है। वह अपना धर्म बजाता है। उन सब को हमने देखा और जाना तो उसे कोई फरियाद ही नहीं रही। देखा अर्थात् जो चार्ज हो चुका था, वह डिस्चार्ज हो गया। आत्मा ज्ञाता-दृष्टा हो गया इसलिए सहजात्मा हो गया। किसी में दखल नहीं करता, मन के धर्म में या अन्य किसी में और मन का, उन
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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