SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आज्ञा का पुरुषार्थ बनाता है सहज लो।' तो इसने पी ली। पी लेने के बाद तो इतनी जलन हुई, बेचारा बहुत परेशान हो गया! अपने लोग तो बहुत होशियार हैं, पैसे बेकार नहीं जाने देते न! एक भी पैसा बेकार नहीं जाने देते। ___ इसलिए जब समझाया, तो कहते हैं, 'ओहोहो! ऐसी तो बहुत सी चीजें की हैं'। तब मैंने कहा, 'आप आइए, मैं आपको संक्षेप में समझाता हूँ, इस पर से समझ जाओ न!' फाइल नं-1 का समभाव से निकाल (निपटारा) नहीं किया है। इसलिए इस फाइल को भी सहज करनी है, समभाव से निकाल करके। चलना ध्येय के अनुसार, मन के अनुसार नहीं प्रश्नकर्ता : ऐसा निश्चय किया हो कि दादा के साथ रहकर काम निकाल लेना है, पाँच आज्ञा में रहना है और उसके बावजूद इसमें कमज़ोर पड़ जाते हैं, तो उसके लिए क्या करना चाहिए? दादाश्री : लो! क्या करना चाहिए यानी? यदि मन कहे कि 'ऐसा करो' और हम जानते हैं कि यह तो अपने ध्येय के विरुद्ध है, बल्कि इससे दादाजी की कृपा कम हो जाएगी। इसलिए मन से कहेंगे, 'नहीं, ध्येय के अनुसार ऐसा करना है'। दादाजी की कृपा किस तरह मिलेगी, वह जानने के बाद हमें उस तरह अपना कार्य करना चाहिए। अर्थात् मन के कहे अनुसार चलने से ही ये सभी झंझटें होती हैं। काफी समय से यह कह रहा हूँ इसे। यही समझाते रहता हूँ। इसलिए अब मन के कहे अनुसार नहीं चलना चाहिए। अपने ध्येय के अनुसार ही चलना चाहिए वर्ना, वह तो जिस गाँव जाना है, उसके बजाय किसी और गाँव ले जाएगा! ध्येय के अनुसार चलना, उसे ही पुरुषार्थ कहते हैं न! ऐसे तो, मन के कहे अनुसार तो ये अंग्रेज़-वँग्रेज़ सभी चल ही रहे हैं न! इन सभी फॉरेन वालों का मन कैसा होता है ? सीधा होता है जबकि अपना मन दखल वाला होता है। कुछ न कुछ उल्टा होता है। इसलिए तो हमें अपने मन का स्वामी खुद बनना पड़ता है। अपना मन, अपने कहे अनुसार चले ऐसा होना चाहिए। प्रश्नकर्ता : जब यह बात निकलती है तो पंद्रह-बीस दिनों तक
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy