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________________ असहज का मुख्य गुनहगार कौन? दादाश्री : हमारी प्रकृति मठिया (मौठ के तीखे-मीठे पापड़) खाती है, यह बात सभी महात्माओं को पता चल गई। तो अमरीका में जहाँ भी जाए, वहाँ पर मेरे लिए मठिया बनाकर रखते थे लेकिन इस वर्ष सिर्फ दो ही लोगों के यहाँ खाए हैं, बस। जो माफिक आए, वह प्रकृति। सभी के घर माफिक नहीं आता। मैं थोड़ा सा खाकर रहने देता था। इसलिए यदि कोई ऐसा कहे कि इन्हें मठिया पसंद हैं तो वह बात मानने में नहीं आएगी। मठिये में रहा हुआ स्वाद है मेरी प्रकृति में। नीरू माँ : दादा, यह तो कैसा है कि आपकी प्रकृति को अभी भाया फिर एक महीने बाद न भी भाए, बदल जाता है। दादाश्री : अरे! तीन दिन में ही बदल जाता है, एक दिन में भी बदल जाता है। आज पराठा भाया और कल न भी भाए। नीरू माँ : न भी भाए। दादाश्री : आपने कब इसकी स्टडी की? नीरू माँ : दादा को देखू तो स्टडी हो जाती है। सहज प्रकृति किस तरह से काम करती है, वह दादा का देखें तभी पता चलता है। दादाश्री : नाश्ता आए तो देख-देखकर लेती है, लेकिन इसमें ऐसा क्या अलग है? तब कहती है, किस पर ज्यादा मिर्च लगी है? इसी को कहते हैं प्रकृति। प्रकृति को रचने वाला कौन? किस तरह की प्रकृति नहीं होती, प्रकृति तो तरह-तरह की होती है। जब बारिश हो तब बुलबुले कौन बनाता होगा? कोई इतना बड़ा होता है, कोई इतना होता है, कोई इतना होता, ऐसे प्रकृति बंध जाती है। कितने ही बड़े होकर यहीं के यहीं फूट जाते हैं, कितने तो बहुत दूर तक चलते हैं, इसी तरह से सारी प्रकति बंध जाती है। संयोग के अनुसार प्रकृति बंध जाती है और प्रकृति के अनुसार संसार चलता है। यह प्रकृति है, अगर आप उसे देखते रहो तो कुछ भी हर्ज़ नहीं
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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