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________________ असहज का मुख्य गुनहगार कौन? प्रश्नकर्ता : अगर दोष हो रहा है, तो प्रतिष्ठित आत्मा का ही दोष हो रहा है न? दादाश्री : वास्तव में दोष व्यवहार आत्मा को लगेगा, लेकिन मूल आत्मा तक तो पहुँचेगा ही नहीं न! यदि व्यवहार आत्मा खुद शुद्धात्मा बन जाएगा तो स्पंदन होना बंद हो जाएँगे और स्पंदन बंद हो गए तो धीरे-धीरे प्रकृति सहजता में आ जाएगी। दोनों सहजता में आ जाएँगे, उसे कहेंगे वीतराग। सहजता में पहला कौन? प्रश्नकर्ता : ज्ञान हो जाने के बाद प्रकृति सहज होती है या जैसेजैसे प्रकृति सहज होती जाती है वैसे-वैसे ज्ञान प्रकट होता जाता है, इसका क्रम क्या है? दादाश्री : जब हम यह ज्ञान देते हैं न, तब दृष्टि बदल जाती है और उसके बाद प्रकृति सहज होती जाती है। उसके बाद संपूर्ण सहज हो जाती है। प्रकृति बिल्कुल सहज हो जाती है और आत्मा तो सहज ही है। बस, फिर हो गया, अलग हो गया। यदि प्रकृति सहज हो जाएगी फिर बाहर वाला भाग ही भगवान बन जाएगा, अंदर वाला तो है ही। अंदर का तो सभी में है। अगर प्रकृति सहज हो जाए तो आत्मा सहज हो ही जाएगा। और आत्मा के सहज होने का प्रयत्न होगा तो प्रकृति सहज हो जाएगी। दोनों में से एक भी सहज की तरफ चला तो दोनों सहज हो जाएँगे। इस काल में प्रकृति सहज नहीं हो सकती। इसलिए 'हम' सहज आत्मा दे देते हैं और साथ-साथ प्रकृति की सहजता का ज्ञान भी दे देते हैं। उसके बाद प्रकृति को सहज करना बाकी रहता है। इस काल में ऐसा है कि अगर आत्मा सहज स्वभाव में आ जाए तो प्रकृति सहज स्वभाव में आ जाएगी। प्रश्नकर्ता : हमारी प्रकृति जितनी असहज होती है...
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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