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________________ अज्ञ सहज - प्रज्ञ सहज १९ I है। क्रोध-मान-माया-लोभ बढ़ गए हैं, इसलिए चिंता बढ़ गई है । वर्ना कोई मोक्ष में जाए ऐसा नहीं है, बल्कि कहेगा, 'हमें मोक्ष में नहीं जाना है, यहाँ बहुत अच्छा है।' इन फॉरेन के लोगों से कहें कि 'चलो मोक्ष में'। तब वे कहेंगे, 'नहीं, नहीं, हमें मोक्ष की कोई ज़रूरत नहीं हैं'। अहंकारी विकल्पी : मोही साहजिक प्रश्नकर्ता : आपने कहा कि पुरुषों के मुकाबले स्त्रियाँ ज़्यादा सहज होती हैं I दादाश्री : स्त्री जाति को बहुत विकल्प खड़े नहीं होते। स्त्रियों में सहज भाव ज़्यादा होता है। यदि अहंकार हो तो विकल्प होते हैं। अहंकार तो हर एक में होता है लेकिन स्त्रियों में बहुत कम होता है। मोह ज़्यादा होता है। अगर सेठ की दुकान का दिवाला निकलने वाला हो, और यदि कोई भिक्षुक आए, तो भी सेठानी, उसे साड़ी देती है, और भी कुछ देती है जबकि यह सेठ तो एक पैसा भी नहीं देता । बेचारे सेठ को तो अंदर ऐसा होता है कि अब क्या होगा ? क्या होगा ? जबकि सेठानी तो आराम से साड़ी-वाड़ी देती है, वह सहज प्रकृति कहलाती है । भीतर जैसा विचार आए वैसा कर देती है । यदि सेठ को भीतर विचार आए कि 'लाओ, दो हज़ार रुपए धर्म में दान करे।' तो तुरंत ही फिर मन में कहेगा, 'अब दिवाला निकलने वाला है, तो क्या दें ? अब छोड़ो न !' ऐसा करके उड़ा देता है ! I सहज तो मन में जैसा विचार आए वैसा ही करता है । अर्थात् अगर भीतर उदय आए, तो माफी माँग लेता है या न भी माँगे लेकिन यदि आप माँग लेंगे तो वह भी तुरंत माँग लेगा । आप उदयकर्म के अधीन नहीं रहोगे, आप जागृति के अधीन रहोगे और यह उदयकर्म के अधीन रहेगा। वह सहज कहलाएगा न ? आप में सहजता नहीं आएगी। यदि सहज हो जाओगे तो बहुत सुखी रहोगे।
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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