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________________ अज्ञ सहज - प्रज्ञ सहज १५ में अहंकार का दखल नहीं होता। अगर वे किचन में खड़ी हो न, तो यूरिन - बाथरूम सब वहीं के वहीं, उन्हें ऐसा कुछ नहीं रहता कि यहाँ नहीं करना है। जिस टाइम पर जैसा उदय हो । जबकि अपनी बुद्धि ज़्यादा चलती है। प्रश्नकर्ता : ऐसे बुद्धि जागृत रखती है I दादाश्री : हाँ! यहाँ पर विवेक उत्पन्न होता है कि 'ऐसा नहीं होना चाहिए', वहाँ उनमें विवेक नहीं होता । प्रश्नकर्ता : विवेक बुद्धि से ही होता है या साहजिक भी हो सकता है ? दादाश्री : हाँ ! बुद्धि से । बुद्धि के बगैर नहीं होता । बुद्धि के प्रकाश से ही विवेक रहता है I प्रश्नकर्ता : विवेक बुद्धि के प्रकाश से, और विनय ? दादाश्री : विनय भी बुद्धि के प्रकाश से ही । प्रश्नकर्ता: दोनों बुद्धि के प्रकाश से ही हैं । दादाश्री : और परम विनय, वह ज्ञान के प्रकाश से । अंतर, अज्ञ सहज और प्रज्ञ सहज में प्रश्नकर्ता : प्राणियों का भी सहज स्वभाव होता है और ज्ञानियों का भी सहज स्वभाव होता है, तो उन दोनों में क्या अंतर हैं ? दादाश्री : प्राणियों का, बच्चों का और ज्ञानियों का, इन तीनों का स्वभाव सहज होता है। जहाँ बुद्धि बहुत होती है, वहाँ पर सहज स्वभाव नहीं रहता। जहाँ पर लिमिटेड बुद्धि होती है, वहाँ सहज स्वभाव होता है। बच्चों में लिमिटेड बुद्धि, प्राणियों में लिमिटेड बुद्धि और ज्ञानी में तो बुद्धि खत्म ही हो चुकी होती है इसलिए ज्ञानी तो एकदम सहज होते हैं।
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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