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________________ समर्पण अहो, कलिकाल, में अद्भुत आश्चर्य सर्जित हुए, ज्ञानी कृपा से, स्वरूप के लक्ष प्राप्त हुए। आत्मा-अनात्मा के, सिद्धांतिक विवरण समझ में आए, आत्मज्योत के प्रकाश से, मोक्ष की ओर कदम बढ़ाए। प्रकृति से अलग होकर, पुरुष पद में स्थिर हुए, प्रतिष्ठा बंद हुई, 'प्रतिष्ठित' के ज्ञाता बने। निज अप्रयास से, मन-वाणी-काया को अलग देखा, अहम्-बुद्धि के विलय होने से डखोडखल बंद हुए। 'व्यवस्थित' के उदय से, डिस्चार्ज के ज्ञाता रहे, प्रकृति के सहज होने पर, निरालंब खुद हुए। सहज 'इस' अनुभव से, 'सहज' का मर्म समझ में आया, 'सर्वज्ञ' स्वरूप 'इस' ज्ञानी को, सहज रूप से पहचाना। ज्ञानी की सहज वाणी से, शास्त्र रचे गए, कैसी करुणा जगकल्याणी ! सहज रूप से समर्पित हुए।
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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