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________________ झंझट होती ही नहीं, सहज भाव से ऐसी विशेष विलक्षणता होती है जिससे कि शुभ पर राग या अशुभ पर द्वेष, किंचित्मात्र नहीं होता। भगवान महावीर के कान में कीलें ठोकी गईं, कान में से कीलें निकालते समय उनकी देह से चीख निकली होगी या आँखों में से आँसू निकले होगें, फिर भी वह देह अपने सहज भाव में होती है और परपरिणाम जो डिस्चार्ज स्वरूप है, उसमें खुद वीतराग ही रहते हैं। यदि देह को असर न हो और स्थिर रहे वैसा तो अहंकार से रख सकते हैं, वे ज्ञानी कहलाते ही नहीं। ज्ञानी का तो सहज आत्मा अर्थात् स्व-परिणाम और देह अपने सहज स्वभाव में उछल-कूद करे। कील ठोकते समय भगवान महावीर के करुणा के आँसू थे और कील निकालते समय वेदना के आँसू थे! ये सभी अलौकिक बातें हैं! अहंकार क्या करता है कि यदि मैं अभी रोऊँगा तो लोगों को मेरा ज्ञान गलत लगेगा, इसलिए रोता नहीं। जबकि सहजता वालों को तो भले ही लोगों को कैसा भी लगे, उनका आत्मा खुद स्व-परिणाम में ही रहेगा, वही सहज आत्मा है ! यदि देह जल जाए तो असर में आ जाए, हिल जाए वह भी सहज स्वभाव में है। जब गजसुकुमार के सिर पर अंगारे की सिगड़ी बनाकर रखी तब उनका सिर जल रहा था, उसे वे ज्ञान में रहकर देखते रहें। उसमें जो समता रखी कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ, केवलज्ञान स्वरूप हूँ, यह अलग है।' भीतर बहुत जलन हुई, उस जलन का एहसास हुआ लेकिन अंत में हिसाब पूरा करके मोक्ष में चले गए। ज्ञानी. तीर्थंकर निरंतर खद के केवलज्ञान स्वरूप में ही रहते हैं और खुद के एक पुद्गल में ही दृष्टि रखकर देखते रहते हैं। दादाश्री कहते हैं, हम में अभी चार डिग्री की कमी है इसलिए ज्ञान में भगवान महावीर के जैसे तो नहीं रह पाते। और वह चार डिग्री की कमी भी हम लोगों के कल्याण के लिए है। ज्ञानविधि के द्वारा ज्ञान देना, आज्ञा देना और उस पुरुषार्थ का फल है कि उन्हें चार डिग्री की कमी है, उसमें दो डिग्री बढ़ी, ऐसे डिग्री बढ़ते-बढ़ते वह पुरुषार्थ केवलज्ञान के नज़दीक 33
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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