SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हैं, यदि हमारी चिट्ठी लेकर माता जी के दर्शन करने जाओगे तो माता जी स्वीकार करेंगी। माता जी के आशीर्वाद से संसार के विघ्न दूर होते हैं लेकिन मोक्ष तो आत्मज्ञान के द्वारा ही प्राप्त होता है। [8] अंत में प्राप्त करनी है अप्रयत्न दशा संसार भी बाधक नहीं है और संसार की ज़िम्मेदारियाँ भी बाधक नहीं हैं, खाने के बाद भीतर सहज रूप से चलता है उसके बजाय बाहर ज़्यादा सहज चलता है। हमें क्या हो रहा है उसे देखते रहना है। क्योंकि बाहर की क्रिया व्यवस्थित के ताबे में है, अपने ताबे में नहीं है। व्यवस्थित अर्थात् क्या कि सहज भाव से रहो और जो हो रहा है उसे होने दो। तो हम अप्रयत्न दशा में रह पाएँगे और ज्ञान परिणाम पाएँगे। अंत में यह दशा प्राप्त करनी है। खाने के बाद क्या देखने जाना पड़ता है कि भीतर पाचक रस डले, पाचन किसने करवाया, अपने आप ही सारी क्रिया होकर सबकुछ अलग-अलग हो जाता है न? भीतर कौन करने गया था? रात को नींद में शरीर सहज होता है, अंदर का अपने आप ही चलता है। तो क्या बाहर का नहीं चलेगा? 'मैं करता हूँ, मुझे करना पड़ेगा' ऐसा मानकर दखल करते रहते हैं। बाकी, खाना-पीना, काम-व्यापार, व्यवहार सबकुछ सहज भाव से चलता है। सहज भाव में बुद्धि का उपयोग नहीं होता। सहज अर्थात् अप्रयत्नदशा, खुद का किसी भी प्रकार का कोई प्रयत्न नहीं। हाँ, चंदू का प्रयत्न होता है, वह भी व्यवस्थित के अधीन होता रहता है, लेकिन खुद 'मैंने यह किया', वह भान नहीं होता। इस संसार में करने जैसा और नहीं करने जैसा कुछ भी नहीं है। क्या होता है उसे देखते-जानते रहना है। अपनी दृष्टि कैसी रखनी है? सहज । क्या होता है, उसे देखना है। यदि व्यवस्थित संपूर्ण रूप से समझ में आ जाए तो केवलज्ञान प्रकट होता जाएगा, संपूर्ण सहज होता जाएगा। ज्ञान मिलने के बाद निर्विकल्प तो हो गए लेकिन सहज नहीं हुए। जितना सहज होते जाएँगे उतनी वीतरागता आती जाएगी। 27
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy