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________________ * यदि चारित्र मोह में दखल न करे तो प्रकृति सहज होती जाती * जब व्यवहार अहंकार संपूर्ण रूप से विलय हो जाए तभी सहज वाणी निकलती है। * मन-वचन-काया सहज स्वभाव से क्रियाकारी हैं। वे सबकुछ करते ही रहते हैं और सहज स्वभाव से आत्मा का ज्ञान-दर्शन क्रियाकारी है। यदि यहाँ पर ये सभी चीजें रखी हो तो आत्मा उन्हें सहज स्वभाव से देखता ही रहता है, जानता रहता है! * अभी तो 'कुछ नहीं करता,' वह भान है इसलिए आनंद थोड़ा कम होता है। जब सहज हो जाएगा तब सारा दिन आनंद और ही प्रकार का होगा! 'पहले कुछ करता था,' वह भान था उसके बाद अब 'नहीं करता' उसका भान है लेकिन 'मूल चीज़' दोनों से अलग है। * जो सहजता को तोड़ दें, वे सभी चालाकी हैं। चालाकी तो संसार में भी नुकसान करती है और अपार अपयश दिलवाती है। * जहाँ खुद ‘प्लानिंग' नहीं करता, वह सब एकदम 'डिस्चार्ज' है। 'प्लानिंग' करता है, उसमें 'चार्ज' होता है। 'डिस्चार्ज' सहज स्वभावी है। उसमें दुःख नहीं होता। * जब विषय पर संपूर्ण रूप से कंट्रोल हो तब साहजिक होता है, वर्ना साहजिक नहीं होता। * जिसे कुछ भी नहीं चाहिए और किसी भी चीज़ की ज़रूरत नहीं पड़ती, उसे सहज माना जाता है। * सहज समाधि, वह 'अंतिम' साध्य है।
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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