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________________ 'सहज' को देखने से, प्रकट होती है सहजता १५३ देह के सभी परिणाम बदल जाते हैं। जबकि अज्ञानी के नहीं बदलते। यदि अज्ञानी ऐसे ही स्थिर हुआ तो वैसे का वैसा ही। अहंकार है न! और इन्हें अहंकार नहीं, इसलिए ये रोएँगे, सबकुछ करेंगे। प्रश्नकर्ता : उस समय जब उनकी प्रकृति रोती है तब वे अंदर खुद के स्व-स्वरूप में स्थिर रहते हैं? दादाश्री : ठीक है। प्रश्नकर्ता : वे प्रकृति को कुछ भी कंट्रोल नहीं करते? दादाश्री : प्रकृति, प्रकृति के भाव में ही रहती है। उसे कंट्रोल करने की आपको ज़रूरत नहीं है। अगर आप अपने सहज स्वभाव में आ गए तो यह सहज स्वभाव में ही है। यहाँ पर है न, यदि मुझे संगमरमर के पत्थर पर से चलकर जाना हो, जूते बगैर, तो मैं चीख-पुकार करूँगा, अरे जल गया, जल गया, जल गया, तो वे ज्ञानी हैं। वर्ना, यदि ऐसे दबा देंगे, बोलेंगे नहीं तो समझ जाना कि ये भाई अज्ञानी है। अभी पक्का करे और पक्का रखे। सहज अर्थात् क्या? जैसा है वैसा कह दे। जिसे केवलज्ञान प्रकट हुआ हो न, उसका देह सहज होता है। दौडने के समय पर दौडता है, रोने के समय पर रोता है, हँसने के समय पर हँसता है। तब कहते हैं, भगवान महावीर के कान में से कीलें निकाली, तो वे क्यों रो पडे? अरे भाई, वे रो पडे, उसमें तेरा क्या जाता है? वे तो रोते ही हैं। वे तो तीर्थंकर हैं। वे कोई अहंकारी नहीं हैं कि आँखों को ऐसे रखेंगे और वे ऐसे-वैसे करेंगे। जबकि अहंकारी होगा तो मुश्किल कर देगा। महावीर भगवान एकदम बेहोश नहीं थे। जब उनके कान में से कीलें निकाली तब वे रोते भी थे, हँसते भी थे, सभी साहजिक क्रियाएँ होती हैं। ज्ञानी रोते भी हैं, हँसते भी हैं, सभी क्रियाएँ साहजिक होती (भगवान महावीर के कान में) कील ठोकते समय करुणा के
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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