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________________ 'सहज' को देखने से, प्रकट होती है सहजता १४९ दादाश्री : शुभ व्यवहार तो अज्ञानी और ज्ञानी, दोनों कर सकते हैं क्योंकि ज्ञानी को शुभ व्यवहार करना नहीं रहता, अपने आप हो जाता है। जबकि अज्ञानी तो करता है । अहंकार है न, इसलिए शुभ व्यवहार करता है। अर्थात् अगर आप उनसे कहो कि आप हमारा नुकसान कर रहे हो। मुझे आपके साथ काम नहीं करना है, तो वह भाई क्या कहेगा ? यदि नुकसान हो गया हो तो भूल जाओ लेकिन अब नए सिरे से अपना अच्छा काम करो न! अर्थात् हमने अशुभ किया, लेकिन वह शुभ करता है। जहाँ चिढ़ना हो वहाँ पर चिढ़ता नहीं बल्कि उल्टा हमें मोड़ लेता है। अभी तक जो कुछ भी हुआ उसे भूल जाओ और नये सिरे से मानो कि कुछ हुआ ही न हो, कुछ गुनाह ही नहीं हुआ हो, ऐसा भूला देता है न? तब गाड़ी आगे चलती है वर्ना, गाड़ी डिरेल होकर खड़ी रह जाएँगी। जो डिरेलमेन्ट हो चुके हैं उन्हें देखा है आपने? अर्थात् शुभ व्यवहार अज्ञानी और ज्ञानी दोनों कर सकते हैं । ज्ञानी का सहज भाव से होता है, अज्ञानी को करना पड़ता है I ज्ञानी की विलक्षणता ज्ञानी पुरुष किसे कहते हैं कि जिन्हें त्याग या अत्याग संभव नहीं होता, सहज भाव से होता है । वे राग-द्वेष नहीं करते। उनमें सिर्फ, विशेष विलक्षणता क्या होती है कि राग-द्वेष नहीं होता । इतनी ही विलक्षणता होती है। दूसरी कोई विलक्षणता नहीं होती! योगी और ज्ञानी में अंतर प्रश्नकर्ता: योगी भी ज्ञानी के जैसे सहज रहते हैं, क्या ? दादाश्री : वे योगी हैं लेकिन ज्ञानी नहीं न ! ज्ञानी को ऐसा वैसा नहीं रहता न! ज्ञानी को सब सहज रहता है। ओढ़ाओगे तो ओढ़कर बैठेंगे और यदि स्त्री के कपड़े पहनाओगे तो स्त्री के कपड़े भी पहनेंगे और यदि नग्न कर दोगे तो नग्न ही घूमेंगे । अर्थात् योगी में और ज्ञानी में तो बहुत अंतर होता है । ज्ञानी निर्भय रहते हैं । प्रश्नकर्ता : अर्थात् योगी में अहंकार होता है ?
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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