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________________ नहीं करना कुछ भी, केवल जानना है १३७ त्याग करने वाला भी अहंकारी ही होता है और त्याग का फल फिर आगे मिलता है। लोग कहते हैं न, 'त्यागे सो आगे।' वे कहते हैं कि यदि आपको देवगति का सुख भोगना है तो यहाँ एक स्त्री को छोड़ दो। जबकि हमें तो त्याग-ग्रहण दोनों नहीं चाहिए, निकाल ही करना है। सभी संयोग वियोगी स्वभाव के हैं और वे संयोग अपने दखल के कारण ही उत्पन्न हुए हैं। अगर दखल नहीं की होती तो संयोग उत्पन्न ही नहीं होते। जब तक ज्ञान नहीं मिला था तब तक दखल ही करते रहते थे और मन में ऐसे मानकर घूमते थे, कि मैं तो भगवान के धर्म का पालन कर रहा हूँ! जड़ ने चैतन्य बन्ने द्रव्यनो स्वभाव भिन्न, सुप्रतितपणे बन्ने जेने समजाय छे, स्वरूप चेतन निज, जड़ छे संबंध मात्र... - श्रीमद् राजचंद्र जड़ संबंध है और आत्मा चैतन्य है, खुद है। खुद संबंधी और यह जड़, संबंध मात्र है। हमें संयोगों का संबंध हुआ है। बंध नहीं हुआ, संबंध हुआ है और संयोग फिर वियोगी स्वभाव के हैं। हम कहते हैं कि यह चिपका, यह चिपका। भाई, चिपका लेकिन उस बला को छुड़वाने के लिए ओझा को बुलाना पड़ेगा जबकि यह तो अपने आप समय आने पर छूट जाएगा। यदि यह बला किसी को लग जाए न, तो ओझा को बुलाना पड़ता है तब उतरती है। जबकि ये संयोग जो तुझसे चिपके हैं न, वे वियोगी स्वभाव के हैं इसलिए तुझे ओझा को नहीं बुलाना पड़ेगा। यदि एक बार ज्ञानी पुरुष से आत्मा प्राप्त कर लें तो फिर सभी संयोग संबंध वियोगी स्वभाव वाले हैं। संयोग पराये, सहजता खुद की प्रश्नकर्ता : संयोग में से सहज में गया तो फिर छूट गया और फिर सहज में ही आ गया न? दादाश्री : सहज में रहा इसलिए संयोग छूट जाएगा। खुद सहज
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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