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________________ अंत में प्राप्त करना है अप्रयत्न दशा १२९ ठीक रहेगा तभी सहज हो पाएगा, नहीं तो किस तरह से सहज होगा, वह ? अपने मन का माना हुआ नहीं चलता। क्या मन का माना हुआ एक भी चला, तो वह चलता होगा ? प्रश्नकर्ता : यदि शादी नहीं करनी है तो उस दिशा की सारी झंझट कम होती जाएगी न ? दादाश्री : जितनी झंझट कम उतना सहज होता जाएगा और उतना ही हेल्प फुल होगा। झमेलों को आगे बढाएँगे तो सहजता कम होती जाएगी। जब से हमने ज्ञान दिया है तब से थोड़ा सा सहज हो गया है, कुछ अंश में और यदि कोई ऐसा कहेगा कि चलो न, अब तो दादा ने इन्हें ‘फाइल' कहा है जितनी करो उतनी, उसमें क्या हर्ज है ? तो क्या हम मना करेंगे, यदि उसे उल्टा करना हो तो ? प्रश्नकर्ता : इन बाहर की चीजों को कम करने के लिए अंदर की जागृति कैसी होनी चाहिए ? दादाश्री : अंदर की जागृति ऐसी रहनी चाहिए कि वे वस्तुएँ उसे दुःखदायी लगती रहे । प्रश्नकर्ता : अब आपने ऐसा बताया कि आवश्यकता के अलावा जितनी चीजें हैं, उन सभी चीज़ों को जितनी छोड़ सके उतनी छोड़ देनी चाहिए, ऐसा ही हुआ न ? दादाश्री : हाँ! सभी नहीं होनी चाहिए । अगर चिपक गई हो तो उन्हें धीरे-धीरे किस तरह से छोड़ दें, उसके प्रयत्न में रहना चाहिए । प्रश्नकर्ता : अर्थात् वह छोड़ देना, ऐसा कहा न, वह किन चीज़ों में होना चाहिए ? दादाश्री : छोड़ देना, इसमें शब्द नहीं ढूँढने हैं । यह तो, हमें अंदर समझ लेना है कि इससे कब छूटेंगे ? यदि खुद को अहितकारी लगेगा तो तुरंत छोड़ देगा। देखो न, शादी के लिए साफ मना कर देता है । प्रश्नकर्ता : यह खुद को अहितकारी चीज़ लगती है, ऐसा सभी बात में समझ में आना चाहिए ।
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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