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________________ अंत में प्राप्त करना है अप्रयत्न दशा १२३ दादाश्री : जिस तरह से बंध गया उस तरह से छोड़ देना है। प्रश्नकर्ता : उसके बाद जो घर की फाइलें रही, उन घर की फाइलों का क्या? दादाश्री : उन फाइलों का निकाल भी आपको करना है न? प्रश्नकर्ता : लेकिन जब तक व्यवहार है तब तक वह बीच में आया ही करेगा न? दादाश्री : उस व्यवहार का तो जल्दी से निकाल कर देना है। यदि प्लेन की टिकट लेनी हो और बहुत बारिश हो रही हो तो निकाल किए बगैर बैठे रहेगा क्या? प्रश्नकर्ता : वह तो रास्ता ढूँढकर पहुँच ही जाएगा। जानो व्यवहार को उदय स्वरूप भगवान ने अनिवार्य व्यवहार को शुद्ध व्यवहार कहा है। प्रश्नकर्ता : हाँ, तो जो नौकरी करनी पड़ती है, उसे? दादाश्री : नहीं, नौकरी वह अनिवार्य व्यवहार नहीं है। वह है ही नहीं, नौकरी करना है ही नहीं। नौकरी, व्यापार या खेती-बाड़ी करना, ऐसा है ही नहीं न? प्रश्नकर्ता : तो वह बंद करने वाली चीज़ हो गई न? दादाश्री : उसमें तो सुख होता ही नहीं न! जिसे आगे की दशा प्राप्त करनी है, उसे सुख लगता ही नहीं। वह तो, जो समभाव से निकाल (निपटारा) करता होगा, उसे चलेगा। प्रश्नकर्ता : ऐसी आत्म जागृति उत्पन्न होना और व्यवहार करना, वह खुद की सारी शक्तियों को व्यर्थ खर्च करके व्यवहार करने जैसा है। दादा से ज्ञान की समझ प्राप्त करना और वहाँ जाकर सारी शक्तियों को व्यर्थ खर्च कर देना, उसके जैसा होता है यह तो। दादाश्री : ऐसा है न कि यह खाना शरीर के लिए ज़रूरी है,
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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