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________________ अंत में प्राप्त करना है अप्रयत्न दशा है । इसी तरह लोगों को हाँकना नहीं आता इसलिए कृष्ण भगवान ने क्या कहा कि भाई अर्जुन, तू अंदर बैठ, तुझे नहीं आएगा और भगवान खुद बैठे। भगवान बैठे अर्थात् व्यवस्थित यह सब चलाता है इसलिए आपको लगाम छोड़ देनी है। घोड़े किस तरफ जा रहे हैं, उन्हें देखा करो। तब व्यवस्थित समझ में आएगा कि ओहोहो ! पूरे दिन के लिए लगाम छोड़ दी तो भी यह चला। खाना-पीना, संडास वगैरह, व्यापार वगैरह सबकुछ हुआ ? तब कहें, 'हाँ, सब अच्छा हुआ रोज़ के बजाय बहुत अच्छा हुआ । ' १२१ सिर्फ, लगाम छोड़ देनी है, इसलिए रात में ही तय कर लेना है कि सुबह उठे तब से दादा को लगाम सौंप देनी है । जैसे अर्जुन ने कृष्ण भगवान को सौंप दी थीं न, उसी तरह से सौंप देनी हैं। लगाम छोड़ देने का यह प्रयोग आप सप्ताह में एक दिन तो करके देखो ? रविवार हो, उस दिन सुबह के समय लगाम छोड़ देनी है और ऐसा कहना है कि 'दादा, यह लगाम आपको सौंपी', इन पाँच इन्द्रिय रूपी घोड़ों की लगाम आपको सौंप देनी है और आपको तो सिर्फ देखते ही रहना है कि यह किस तरह से चलता है । वे गाड़ी को गड्ढे में नहीं गिरने देंगे और कुछ भी नहीं होने देंगे। हम आपको सप्ताह में एक दिन लगाम छोड़ देने के लिए कहते हैं । कभी भूलचूक हो जाए तो 'दादा, मैंने यह लगाम फिर से पकड़ ली, उसके लिए मैं माफी माँगता हूँ और अब नहीं पकडूंगा।' ऐसा बोलकर फिर दोबारा लगाम छोड़ देनी है। शुरुआत में भूल हो जाएगी, प्रेक्टिस करने में थोड़ा समय लगेगा। उसके बाद दूसरी, तीसरी बार 'करेक्टनेस' आ जाएगी फिर उसके आगे बढ़ने के लिए आगे का प्रोग्राम देखना हो तो 'चंदूभाई क्या बोल रहे हैं, देखते रहना है कि यह करेक्ट है या नहीं ?' उसे ज्ञान समझकर, रहना जागृत प्रश्नकर्ता: दादा, लक्ष तो उस अंतिम दशा का ही है, उस दशा के पूर्ण होने में ये जो भी कमियाँ हैं, जब समझ में आता है कि अंतिम दशा यह है और ऐसा ही होना चाहिए तब उसके लिए क्या करना चाहिए ?
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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