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________________ अंत में प्राप्त करना है अप्रयत्न दशा ११७ और यदि कड़वा लगे तो रहने देना है? प्रश्नकर्ता : नहीं, निकाल देना है। दादाश्री : इसलिए यदि 'मुँह बिगड़ता है' तो होने देना है। हमने दखल नहीं की, उसे सहज कहेंगे। यह पूरा मार्ग सहज का है। प्रश्नकर्ता : 'सहज मिला सो दूध बराबर', ऐसा कहते हैं तो यदि सहज की प्राप्ति प्रारब्ध के अधीन है, तो पुरुषार्थ में क्या अंतर है? दादाश्री : सहज की प्राप्ति प्रारब्ध के अधीन नहीं है, वह ज्ञान के अधीन है। अज्ञान होने से असहज होता रहता है और यदि ज्ञान हो तो सहज होता रहेगा। अज्ञान से ही तो सारा जगत् असहज है न? यह तो अक्रम विज्ञान है, क्रम वगैरह कुछ नहीं, कुछ करना ही नहीं। जहाँ करना पड़े वहाँ आत्मा नहीं होता। जहाँ करना पड़े वहाँ संसार और जहाँ सहज हो वहाँ आत्मा! लगाम, कर्तापना की प्रश्नकर्ता : अब, हमें कितने बजे उठना चाहिए? सुबह के कार्यक्रम किस तरह से करने चाहिए और जीवन किस तरह से जीना चाहिए? ज़रा समझाइए। दादाश्री : हाँ, समझाते हैं। ऐसा है कि एक दिन के लिए लगाम छोड़ दो, शनिवार की रात से या रविवार के दिन सुबह से लगाम छोड़ देनी है कि अब, मुझे कुछ भी नहीं चलाना है। फिर देखो, चलता है या आपको चलाना पड़ता है? अभी तक तो लगाम पकड़कर रखी थी इसलिए आपको ऐसा लगता था कि मैं ही चलाता हूँ लेकिन जब लगाम छोड़ देते हो तब चलता है या नहीं? प्रश्नकर्ता : चलता है। दादाश्री : सुबह चाय-नाश्ता नहीं मिलता? मुझे लगता है, सुबह उठते ही नहीं। नहीं उठते? प्रश्नकर्ता : उठ जाते हैं।
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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