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________________ ७८ सहजता प्रश्नकर्ता : बुद्धि, वह ज़्यादा बंधन वाला मार्ग है। दादाश्री : संसार में सब अच्छा कर देती है, फर्स्ट क्लास अच्छा कर देती है लेकिन कहती है, 'वहाँ नहीं जाने दूँगी।' अर्थात् इस तरफ बुद्धि का खिंचाव है और उस तरफ प्रज्ञा का खिंचाव है । प्रज्ञा कहती है, जो व्यक्ति हार्टिली हो, उसे मैं हेल्प फुल करूँगी, आगे ले जाऊँगी, ठेठ तक ले जाऊँगी, मोक्ष में ले जाऊँगी। हमारी बुद्धि चली गई इसलिए हमारा हार्ट इतना ज़्यादा प्योर है न, एकदम प्योर ! मुझे कहते थे कि हार्टिली वाणी... प्रश्नकर्ता : ‘हृदय को स्पर्श करने वाली सरस्वती, इस वाणी का लाभ अनोखा है !' यह वाणी इतनी असरदायक है कि जिस पज़ल का हल बुद्धि से नहीं आता, उसका हल यह वाणी ला देती है । दादाश्री : यह वाणी प्रत्यक्ष सरस्वती कहलाती है। परेशानी है विपरीत बुद्धि के कारण भाव कर्म-नो कर्म और द्रव्य कर्म के जाल को हटा दो, फिर देखो अबुध अध्यास से ! यदि अबुध अध्यास होगा तो वे जाले हट जाएँगे, बुद्धि से वे जाले नहीं हटेंगे। बुद्धि तो अपना काम करती रहेगी लेकिन उसका उपयोग नहीं करना है। यह तो, जहाँ साँप हो वहाँ बुद्धि के लाइट से देखने पर अजंपा (बेचैनी, अशांति, घबराहट) होता है जबकि 'व्यवस्थित' कहता है यदि 'तू तेरे रास्ते से जाएगा न, तो कोई भी नहीं काटेगा!' तब निराकुलता रहती है। बुद्धि तो संसार में जहाँ-जहाँ उसकी जितनी ज़रूरत है उतना उसका सहज प्रकाश देती ही है और संसार का काम हो जाता है, लेकिन ये तो विपरीत बुद्धि का उपयोग करते हैं कि यदि साँप काट लेगा तो! वही उपाधि करवाती है । सम्यक् बुद्धि से सभी दुःख चले जाते हैं जबकि विपरीत बुद्धि सभी दुःखों को इन्वाईट (आमंत्रित) करती है। बुद्धि तो यह देखने के लिए है कि सामने वाले को किस तरह से लाभ हो, लेकिन यह तो दुरुपयोग करती है, उसे व्यभिचारिणी बुद्धि कहा
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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