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________________ 28 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) क्या है कि उन्हें जो मार्ग बताया, उसी मार्ग पर भागदौड़, आसपास कुछ भी देखना-करना नहीं होता। दो-चार प्रतिशत कुछ ऐसे ब्रिल्यन्ट होते भी हैं लेकिन दूसरा काफी कुछ भाग तो, सामान्य कक्षा के 95 प्रतिशत लोग तो ऐसे ही हैं आसपास नहीं देखते, पढ़ते ही रहते हैं, बस। फिर ऐसा सब नहीं देखते कि माँ-बाप को क्या होता है, उन्हें क्या तकलीफ है। माँ-बाप कैसे कमाते हैं, खाते हैं? ऐसा कुछ नहीं सोचते कि पैसा कहाँ से आता है। वे तो ऐसा समझते हैं कि जैसे नल में से आ रहा है। नल खोलते ही पैसे आ जाएँगे। अतः यह तो अच्छा है कि कुदरती रूप से ऐसे बच्चे पैदा हुए। अब जाकर हिन्दुस्तान का भला होगा। सिर्फ पढ़ते रहने की ही नीयत। वेदियो', अपने यहाँ 'वेदियो' शब्द कहते हैं न, अंदर? प्रश्नकर्ता : हाँ हाँ! बुकवॉर्म। किताबी कीड़ा। दादाश्री : नहीं! बुकवॉर्म अलग है और वेदिया अलग। वेदिया अर्थात् क्या? जिस एक काम को पकड़ा, तो उसी में रहता है और बुकवॉर्म का मतलब बुक में ही रहता है। अरे, यह वेदियो तो सभी में वेदियो होता है जबकि जगत् क्या माँगता है ? सात समोलियो माँगता है, वेदिया नहीं। एवरी डाइरेक्शन वाला (सभी दिशाओं वाला) माँगते हैं। सभी डाइरेक्शन में जागृति की ज़रूरत है तो पुराने जमाने के लोगों को पढ़ना नहीं आता था। आपके-मेरे समय में पढ़ाई करना नहीं आता था, बहुत कम लोग पास होते थे और आज चाहे किसी के भी बच्चे हों, चाहे किसी भी जाति के बच्चे ग्रेज्युएट बन जाते हैं, डॉक्टर बन जाते हैं। फिर मुझे एक व्यक्ति ने पूछा था, 'क्या ये बच्चे होशियार हैं ? यह ज़माना कैसा है!' तब मैंने कहा, 'क्या तू ऐसा कह रहा है कि पहले बेवकूफ थे? और उनमें से हम भी हैं? आज के बच्चे होशियार हैं ? हम नापास हो गए तो क्या हम बेवकूफ हैं ?' आजकल के बच्चों को कोई भान ही नहीं है। एक ही चीज़ है कि 'पढ़ना है, पढ़ना है और बस पढ़ना है। व्यवहारिक ज्ञान तो समझा ही नहीं है। वे सिर्फ पढ़ते ही हैं, व्यवहारिक सूझ नहीं है उनमें और अपने समय में तो व्यवहारिक सूझ और पढ़ाई दोनों साथ में चल रहा था। व्यवहारिक सूझ की ज्यादा कीमत थी बल्कि!
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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