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________________ ज्ञानी पुरुष ( भाग - 1 ) घेमराजी (अत्यंत घमंडी, जो खुद अपने सामने औरों को बिल्कुल तुच्छ माने) कहेंगे। लोगों ने क्या कोई छोटा पद दिया है इन्हें ? लोगों ने नहीं दिया है, यह पद तो खुद ने मान लिया है। 12 इसलिए यह चक्कर अच्छा ही नहीं लगता था, मुझे तो बिल्कुल ही पसंद नहीं था। मुझे तो किसी जन्म में किसी ने साला कहा होगा, उसी वजह से मैंने मोक्ष में जाना तय किया होगा। साला कह जाए ! साले आए ! किसी जन्म में साले के रूप में हमारा अपमान हुआ होगा तो कितने ही जन्मों से बहन नहीं मिली । साला कहा कि अपमान लगा ! आज हमारी सात पीढ़ियों में किसी के यहाँ बहन नहीं है । 'इस जन्म में बहन नहीं चाहिए,' वह पूर्व जन्म की चिढ़ है, यह पिछले जन्म का है ! प्रश्नकर्ता : क्या इसीलिए आपका जन्म वहाँ पर हुआ है ? दादाश्री : वह तो चाहे कुछ भी हो लेकिन कुछ तो हुआ, कुछ हुआ तो सही न! प्रश्नकर्ता : पिछले जन्म का हो तभी हो सकता है न! दादाश्री : इसीलिए बहन नहीं थी न, वह भी आश्चर्य ही है न ! प्रश्नकर्ता : भाई थे ? दादाश्री : हाँ, ढेर सारे । समझ में आया गलत अहंकार, ज़ाहिर कर दीं कमज़ोरियाँ प्रश्नकर्ता : क्या पाप है साला बनने में, दादा ? दादाश्री : पाप नहीं है । यह तो गलत अहंकार है, एक तरह का । खुद के साले हैं और खुद को दूसरों का साला नहीं बनना है । साला बनना कोई गुनाह है ? यह तो न जाने कहाँ से ऐसा भूत घुस गया था, वही समझ में नहीं आ रहा है और इस भूत को इस तरह क्यों संभालकर रखा हमारे बुजुर्गों ने वह भी मुझे समझ में नहीं आता । अरे! रोज़ कमाकर
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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