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________________ [10.10] ज्ञानी के लक्षण, बचपन से ही 447 पड़ी थी। न्याय नहीं मिले, तब कि तब पता चलता है 'इसके साथ मेरे कर्म के उदय कितने खराब हैं'। ___लोग कहते हैं कि यह न्याय है, लेकिन ऐसा होता नहीं है न! जो भी होता है वह अपने कर्म के उदय के अनुसार है। व्यवस्थित ढूँढ लिया बचपन में हम बचपन में पेन से खेलते थे। पेन के छोटे टुकड़े डिब्बी में डालते थे। सभी लोग निशाना लगा-लगाकर फेंकते थे तो सात में से तीन-चार डिब्बी में गिरकर बाहर निकल जाते थे और मैं यों ही बिना निशाना लगाए फेंकता था तो चार-पाँच (स्लेट पेन्सिल) डिब्बी में गिरती थीं। तब मैं सोचता था कि, 'यदि हम कर्ता होते तो मेरी एक भी पेन्सिल डिब्बी में नहीं जाती। क्योंकि मुझे तो आता ही नहीं था न और वे लोग निशाना लगा-लगाकर डालते हैं फिर भी नहीं गिरती थीं'। ऐसा है यह व्यवस्थित! दिल के सच्चे थे न इसीलिए सच्चा मिल गया प्रश्नकर्ता : लेकिन आपको अक्रम विज्ञान किस तरह से प्रकट हुआ? यों ही सहज अपने आप ही मिल गया या कोई चिंतन किया था? दादाश्री : अपने आप ही, 'बट नैचुरल' हो गया! हमने ऐसा कोई चिंतन वगैरह नहीं किया। हमें ऐसा सब होता कहाँ से? हम तो ऐसा मानते थे कि, 'लगता है इस तरफ का कोई फल मिलेगा'। सच्चे दिल के थे न, सच्चे दिल से किया था, इसलिए ऐसा लगा था कि ऐसा कोई फल मिलेगा, कुछ समकित जैसा होगा। समकित का कुछ आभास होगा, उसका प्रकाश होगा। उसके बजाय यह तो पूरा ही प्रकाश हो गया!
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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