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________________ 438 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) दुनिया जिस रास्ते पर जा रही है उस रास्ते पर नहीं जाना है। मैं बचपन में, भादरण से बोरसद चलकर जाता था, तब लोग उलझन भरा रास्ता पकड़ते थे, और सिर्फ मैं अकेला ही सीधा और चौड़ा रास्ता पकड़ता था। अगर रास्ता नहीं मिलता था तब अंदर वाले से कह सकते हैं कि 'मैं तो अंधा हूँ इसलिए तुझे नहीं पहचान पाता लेकिन क्या तू भी अंधा है? मुझे कोई सही रास्ता बता' इस तरह से भगवान को डाँटना पड़ता है। अरे भई! तुझे अगर कुछ भी समझ में न आए तो 'अंदर वाला' है, ऐसा कर-करके करेगा तब भी तेरे अंदर के वे आवरण टूटेंगे, आगे का रास्ता दिखेगा लेकिन अगर बाहर भगवान को ढूँढेगा तो उससे तेरा कुछ भी नहीं होगा। प्रश्नकर्ता : जब तक ज्ञान नहीं हो जाए तब तक पता नहीं चलेगा। दादाश्री : हाँ, लेकिन अगर अंदर वाले का ज्ञान नहीं हुआ हो तब भी महादेव जी का कोई ज्ञान हुआ है हमें? लेकिन लोगों को यह बुरी आदत पड़ गई है कि जो सब लोग कर रहे हैं, वही हमें भी करना है। लेकिन भाई, क्या कोई अलग रास्ता है ही नहीं? । टेढ़े-मेढ़े रास्ते के बजाय अच्छा लगता था सीधा रास्ता ___ मैं बचपन से ही जब नौ साल का था तभी से मैंने नियम बनाया था कि लोग जिस रास्ते पर चलते हैं उस रास्ते पर, अगर वह रास्ता सीधा है तो चलना है और अगर रास्ता बहुत टेढ़ा हो तो बीच में नया रास्ता बनाना चाहिए। सभी घूमने जाते थे, तब जब मोड़ आता था तब मैं खेत में से चला जाता था। जहाँ से सब लोग जाते थे, वहाँ से नहीं जाता था। सभी कहते थे कि, 'आप टेढ़े हो'। तब मैं कहता था कि, 'मैं तो पहले से ही टेढ़ा हूँ। उस रास्ते का क्या करना है। लोग तो, अगर टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता बना हो तो टेढ़े चलते हैं, एक मील जाना हो तो तीन मील घूमकर पहुँचते हैं। मैं समझ जाता था कि यह टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता बनाया है। लोग उसी रास्ते पर चलते रहते हैं। हमें नया, सीधा रास्ता बना देना है।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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