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________________ अपनी बगिया में जो कुछ भी बोते थे, लौकी-भुट्टा ऐसा कुछ भी होता था तो वह लोगों को दे देते थे। इस प्रकार पूरी जिंदगी उनका ओब्लाइजिंग नेचर ही रहा। [10.4] जहाँ मार पड़ती वहाँ तुरंत छोड़ देते थे जैसे बच्चे रूठ जाते हैं, बचपन में वे भी उसी तरह एक-दो बार रूठ गए थे, मदर से लेकिन रूठने का परिणाम यह देखा कि दो नुकसान हुए। खाने का भी नहीं मिला और किसी ने भाव भी नहीं पूछा। उनका खाना दूसरों के हिस्से में चला गया। वे खुद बहुत विचक्षण थे इसलिए हर एक अनुभव को नोट करने के बाद उन्हें अपनी भूल समझ में आ जाती थी कि रूठना एक भयंकर नुकसान ही है। जिंदगी में कभी भी रूठना नहीं है और फिर कभी ऐसी भूल नहीं होने दी। [10.5 ] जाना जगत् पोलम्पोल अंबालाल भाई जगत् व्यवहार को बारीकी से ऑब्जर्व करते थे। किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए तो घर वाले व कुटुंबी इकट्ठे होकर चिल्ला-चिल्लाकर रोते थे और छाती पीटती थे। उनका हार्टिली स्वभाव था, तो वे ऐसा देखकर बहुत ही दुःखी हो जाते थे। फिर जब गहराई में उतरकर जाँच की तो पता चला कि वे लोग छाती नहीं पीटती हैं, वे तो हाथ पर हाथ रखकर ज़ोर से आवाज़ करते हैं। सिर पर घट डालकर रोने की आवाज़ करते हैं। बाकी यह तो पूरी गड़बड़ निकली! तब से वे यह समझ गए कि यह पूरी दुनिया लौकिक है, पोलम्पोल है। इसलिए उनका अलौकिक की तरफ आगे बढ़ना शुरू हो गया। टेम्परेरी चीज़ों पर से मोह टूटता गया और अब हर क्षण संसार का स्वरूप भय और दुःखपूर्ण दिखने लगा। सभी कुदरती चीज़े लोन पर हैं, मुफ्त नहीं मिलतीं। यदि लेना हो तो लेना लेकिन वह रिपे करना पड़ेगा, बचपन से ही उन्हें ऐसा सार समझ में आ गया था। 49
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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