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________________ 434 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) बाद में, वह लगनी छूटेगी नहीं, उसे ब्रह्मसंबंध कहते हैं। उस संबंध की लगनी लग जाए, उसके बाद फिर ब्रह्मसंबंध नहीं छूटेगा। यह तो (नाम का ही) भ्रांति का ब्रह्मसंबंध है ! मुझे तो वास्तविक ब्रह्मसंबंध, जब किसी और दूसरे के साथ संबंध न बढ़ाना पड़े ऐसा संबंध बनाना है। यह ऐसा शाब्दिक ब्रह्मसंबंध मुझे नहीं चाहिए। वल्लभाचार्य, शंकराचार्य, सहजानंद स्वामी वगैरह आदि पुरुष बहुत उच्च प्रकार के थे, लेकिन फिर समय के साथ यह सबकुछ बदलने लगा। फिर भी हमें ऐसे शब्द नहीं बोलने चाहिए। हम ज्ञानी पुरुष हैं, हम ज़िम्मेदार कहे जाते हैं लेकिन जब ओपन बात जाननी हो तब सिर्फ जानकारी के लिए ही बताते हैं, और वह भी वीतरागता से कहते हैं। हमें किसी भी जगह पर ज़रा सा भी राग-द्वेष नहीं है। हम जब अच्छा बोलते हैं तब हम में राग उत्पन्न नहीं होता और अगर खराब बोलते हैं तब द्वेष उत्पन्न नहीं होता। हम ऐसे शब्द बोलते हैं फिर भी राग-द्वेष नहीं होते। परिणाम को पकड़ने वाला 'वैज्ञानिक ब्रेन', बचपन से ही प्रश्नकर्ता : सच्चे गुरु के बारे में आपकी इतनी उच्च समझ का क्या कारण है? दादाश्री : वैज्ञानिक ब्रेन (दिमाग़) था शुरू से ही, बचपन से ही वैज्ञानिक ब्रेन! परिणाम को पकड़ने वाला! कैसा ब्रेन? प्रश्नकर्ता : परिणाम को पकड़ने वाला। दादाश्री : हर एक चीज़ प्राप्त हो उससे पहले परिणाम को पकड़ लेते थे। अतः यह परिणाम को पकड़ने वाला ब्रेन, काम आया इसमें। मैं छब्बीस-सत्ताईस साल का था तब कृपालुदेव की किताबें पढ़ता था। फिर वहाँ पर जो महाराज आते थे, स्थानकवासी आते थे तो वहाँ पर जाता था और देरावासी आते थे तो वहाँ पर जाता था। एक बार एक स्थानकवासी महाराज आए थे। उन्होंने मुझसे कुछ बातें सुनीं। तब मुझसे कहा कि 'आप वैज्ञानिक इंसान हो, आपका यह दिमाग़ वैज्ञानिक है। कभी न कभी, भगवान महावीर की बात आपको बहुत अच्छी तरह से
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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