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________________ ज्ञानी पुरुष (भाग - 1) भगवान हर प्रकार से मेरे पूज्य हैं लेकिन ऊपरी के रूप में स्वीकार नहीं हैं । ' आपकी भक्ति करके आप जैसा बनूँगा' मैं क्या कहता था ? प्रश्नकर्ता : आपकी भक्ति करके आप जैसा बनूँगा । दादाश्री : हाँ, आप जैसा ही । आपमें और मुझ में फर्क नहीं है। फर्क सिर्फ इतना ही है कि 'आप यह पढ़कर आगे बढ़ गए हैं और मैं पढ़कर पीछे रह गया हूँ' । और कोई फर्क नहीं है, नो डिफरेन्स । खुद का स्वरूप परमात्मा ही है । भगवान कुछ भी नहीं करता है न! यदि कुछ भी नहीं करता तो उसे ऊपरी कैसे मानें? अगर कोई व्यक्ति मुझे उसका प्रमाण दिखाए कि भगवान ने मुझे यह करके दिया है । जहाँ वह कुछ भी नहीं करता है, वहाँ पर लोग कहते हैं 'भगवान ने किया है'। भगवान को पहचानो तो सही, भगवान ऐसे नहीं हैं कि किसी का ऐसा करें । 424 नाम याद करते ही दुःख दूर होते हैं लेकिन चार आने भी नहीं मिलते यह मैं जब पंद्रह साल का था तभी से ऐसा नहीं मानता था । मैं मान ही नहीं पाता था! किसी एक के यहाँ बहुत कुछ देकर जाते हैं और दूसरे को भटका देते हैं । क्या ऐसा होना चाहिए ? वह कैसा भगवान ? भगवान के पास तो चार आने भी नहीं हैं। भगवान किसी की मदद भी नहीं कर सकते। उनका नाम सुनते ही बाकी सारे दुःख भाग जाते हैं, सभी दुःख लुप्त हो जाते हैं लेकिन वे और कुछ भी नहीं दे सकते हैं। भगवान ने तो उसमें हाथ ही नहीं डाला है । वे ऐसे हैं कि भौतिक दृष्टि में हाथ ही नहीं डालते और ऐसे भी नहीं हैं कि भौतिक करें । आपको भौतिक करवाना है, लेकिन वे तो ज्ञाता - दृष्टा व वीतराग हैं। वीतराग के पास कोई सामान होता है क्या ? वे क्या दे देंगे ? वे वीतराग हैं। उनके पास कुछ भी नहीं है, भौतिक वाले के लिए। वे तो क्या कहते हैं कि, 'अगर आपको शाश्वत सुख चाहिए तो मेरे पास आओ क्योंकि मैं सनातन सुख का भोगी हूँ' । तब मैंने उनसे कहा, 'भाई, इस सनातन सुख का भोगी, मैं ऊपरीपन स्वीकार नहीं करूँगा'। तो वे कहते हैं, 'आप
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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