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________________ [10.8] भगवान के बारे में मौलिक समझ 413 में भगवा कपड़े वाले एक-दो साधु आते थे। हिन्दुस्तानी थे, उत्तर प्रदेश, पंजाब तरफ के। उनमें एक वेदांती पुरुष थे। लोग उन्हें ज्ञानी जी महाराज कहते थे। वे अंधे थे और बहुत वृद्ध थे। यों बहुत आनंदी और अच्छे थे, हृदय के भोले इंसान थे। लड़कों ने बताया कि, 'अंधे महाराज हैं और बहुत अच्छे हैं,' इसलिए मेरी इच्छा हुई कि 'लाओ, मैं जा आता हूँ'। तो जब भी स्कूल से समय मिलता था तो फिर मैं वहाँ, संत पुरुष का आश्रम जैसा था, वहाँ दर्शन करने जाता था। हमारा जन्म तो वैष्णव कुल में हुआ था इसलिए भगवा वस्त्र धारी सन्यासी के दर्शन करने जाते थे। जैन या ऐसा कुछ नहीं था मन में, जो हो सो। मुझे लगा कि महाराज बहुत साफ हैं, नि:स्पृही हैं। तो सब लड़के उनके पैर दबाते थे तो मैं भी पैर दबाने लगा, सभी को देखकर, हेतु समझे बगैर। फिर बाप जी तो बोल उठे, 'बच्चे, तेरा नाम क्या है?' मैंने कहा, 'अंबालाल'। तब उन्होंने कहा, 'अच्छा'। फिर मैं रोज़ महाराज की सेवा करने, पैर की चम्पी करने, पैर दबाने के लिए रोज़ जाता था। स्कूल से छूटकर चुपचाप घंटे-आधे घंटे। उन्हें ज़रा मसाज (मालिश) कर देता था। मुझे वह अच्छा लगता था। __मैं पैर दबाने क्यों जाता था? तब कहा, 'अंधे होने के बावजूद भी, जब भी मैं जाता था और कहता था कि 'बाप जी, जय राम जी' तब वे ऐसा पूछते थे, 'कौन? अंबालाल!' वे शब्दों पर से पहचान जाते थे इसलिए मुझे बहुत आश्चर्य होता था कि 'ये महाराज अच्छे हैं। फिर महाराज से कहता था कि 'मैं थोड़ी खीर बनाकर लाऊँगा, आप खाना' । तो वे कहते थे, 'खाएँगे'। बा से कहता था तो वे बना देती थीं। मैं थोड़ी खीर और पूड़ियाँ बनाकर दे आता था, ऐसा कुछ दे आता था। कभी लड्डू बनाए हों तो दे आता था। कभी-कभी, रोज़ नहीं। इसलिए वे बहुत खुश हो गए।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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