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________________ [10.7] यमराज के भय के सामने शोध 405 सोचते-सोचते मुझे ऐसा लगा कि 'भगवान का कोई ऑफिस होना चाहिए लेकिन वह ऑफिस कहाँ बनाया है भगवान ने? हेड ऑफिस कहाँ पर है ? यदि यमराज जैसा एक नौकर इतना काम करता है तो उनका ऑफिस कितना बड़ा होगा? तो भगवान कितने बड़े होंगे? उनकी कमाई कहाँ से होती होगी? उनका रेवेन्यु (आय) कहाँ से आता होगा? भगवान का रेवेन्यू होगा तभी उन्हें तनख्वाह देते हैं न! अगर कोई इन्कम होगी तभी तनख्वाह देते हैं न! भगवान यह रेवेन्यू कैसे कलेक्ट करते होंगे? इसके पीछे क्या होगा यह सब?' फिर ऐसे करते-करते पूरी बात आगे चली, 'तो भगवान क्या करते होंगे? भगवान की शादी हो गई होगी या कुँवारे हैं? विधुर हैं? इन सब को पत्नी मिल गई फिर क्या भगवान को पत्नी नहीं मिली? अगर मिली है तो भगवान की सास कौन हैं ? ससुर कौन हैं ?' यह सब मुझे विस्तार पूर्वक बताओ। ऐसी सब जाँच की। तब कोई भी जवाब नहीं दे सका। एक संत पुरुष थे, वे भी जवाब नहीं दे सके। इन सभी बातों पर तो मुझे बहुत ही विचार आते थे। एक विचार पर से बहुत से विचार, विचार, विचार आते थे इसलिए फिर मैं कन्फ्यूज़ हो जाता था। मैं समझता था कि यह सब उलझन है, सब गलत है, यह सब मिथ्या है। फिर उनके बारे में बहुत सोचते-सोचते अंत तक विचार उलझे हुए ही रहे। इस तरह उम्र बढ़ती गई, और इस तरह सोचते-सोचते ऐसा लगा कि यमराज नाम का कोई जीव था ही नहीं। बहुत ही मंथन करने लगे इसलिए अंदर उस तरफ की श्रद्धा खत्म हो गई, यमराज नाम की। यानी कि उसी दिन मुझ में ऐसे विचार जागे थे। किया जाहिर, 'यमराज नाम का कोई जीव है ही नहीं' अंत में पच्चीस साल की उम्र में मैंने ढूंढ निकाला कि यमराज नाम का जीव है ही नहीं। जाँच किया तब यह सब गप्प निकली। तो खोज करने के बाद ही इसे छोड़ा। यमराज नाम का कोई देव है ही नहीं, यह सब बोगस ही है, बात ही गलत है बिल्कुल। सौ प्रतिशत गलत बात है, एक प्रतिशत भी सही नहीं है।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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