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________________ फिर तो अंतिम पंद्रह-बीस साल तो भाभी दादाश्री के पैर छूती थीं, आरती भी उतारती थीं। इस प्रकार राग-द्वेष के हिसाब खत्म होते गए। [9] परिवार, कुटुंब और भतीजे यहाँ पर दादाश्री परिवार के व्यक्तियों की प्रकृति की बात बताते हैं, साथ - साथ एक-दूसरे के प्रति प्रेम भी दिखाई देता है। परिवार के साथ ब्लड रिलेशन ( खून का संबंध) माना जाता है लेकिन अगर ज्ञान की, ज्ञानी की पहचान हो जाए तो कल्याण हो जाए। बाकी जब ब्लड रिलेशन हो तब तक राग-द्वेष रहते ही हैं । पटेल प्रकृति थी इसलिए पाँच मिनट में लड़ पड़ते थे और कुछ ही देर बाद वापस साथ में खाना खाने बैठ जाते थे। कपट नहीं था इसलिए मन अलग नहीं होते थे। सिर्फ सभी के अहंकार ही भारी थे 1 कुटुंब के भतीजे उम्र में बड़े होते थे फिर भी अंबालाल चाचा का विनय रखते थे। एक-दूसरे के मान का ध्यान रखते थे। दो लोग अंदर-अंदर ही लड़ते थे लेकिन यदि तीसरा व्यक्ति आ जाए तो दोनों एक हो जाते थे और तीसरे के साथ लड़ने लगते थे। इस प्रकार रागद्वेष वाला व्यवहार था । कुटुंब में स्पर्धा बहुत रहती थी लेकिन अंबालाल भाई स्पर्धा में कभी भी नहीं पड़े। लोग स्पर्धा में आगे जाने के लिए सामने वाले की शक्ति को तोड़ देते हैं जबकि अंबालाल भाई 'सब मुझसे आगे बढ़ो पीछे मत रह जाना' ऐसी भावना वाले थे । 'मैं आपको आगे बढ़ने में हेल्प करूँगा,' और उन्होंने पूरी जिंदगी ऐसा ही रखा। भतीजों के साथ के टकराव में वे खुद एडजस्टमेन्ट लेते थे । किसी भतीजे की गाड़ी अगर उल्टी पटरी पर चली जाए तो ज़रूरत पड़ने पर उसे डाँटकर सुधारते भी थे ! कुटुंब या मित्रों में अगर किसी को एक दूसरे के साथ अंदर-अंदर तकरार हो जाती तो वे खुद वेल्डिंग कर देते थे । वेल्डिंग करने वाला अंत में मार ही खाता है, लेकिन मार खाकर भी वे उन दोनों को तो मिलवा देते थे। 46
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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