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________________ 392 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) वे लपटें भूत की नहीं थीं, वे सुलगती हुई बीड़ी की थीं प्रश्नकर्ता : लेकिन भूत था तो सही? दादाश्री : कोई भूत नहीं था, भूत का भय भी नहीं था लेकिन आदत ऐसी थी! ऊपर गिरकर उसे पीस दिया ! और वे चिंगारीयाँ बीड़ी जलाने वाले एक इंसान की ही थीं। जो आदमी बीड़ी जला रहा था, मैं उस पर गिर पड़ा। मैं टकरा गया, मुझे लगी और वह बेचारा आदमी भी एकदम गिर पड़ा, दब गया बल्कि। मैं समझ गया कि यह कोई इंसान है! वह इंसान था, और कोई नहीं था। वह शोर मचाने लगा। 'भाई साहब, मुझे कहाँ मार डाला? मुझे किसने मार डाला?' 'मैंने कहा, अरे, तुझे कौन मारेगा? मैं हूँ', और ऊपर से मैंने उसे डाँटा। मैंने कहा, 'नालायक, रास्ते में आ रहा है ? अभी कहाँ से आया?' ऐसा करके ज़रा उसे डाँटा तो उसने कहा, 'सेठ आप? सेठ आप हैं ' मैंने कहा, 'हाँ'। मुझसे कहा, 'आप अभी कहाँ से आ रहे हैं?' कहने लगा, 'मुझे तो लग गई है'। मैंने कहा, 'चल पट्टी-वट्टी बंधवा दें अब। चुपचाप आ जा वहाँ पर। चल-चल, जरा वहाँ तक चल'। तो मैं उसे महुआ के पेड़ तक ले गया। फिर मैंने कहा, 'जा अब, ले बीड़ियाँ देता हूँ'। उसे कुछ बीड़ियाँ दीं। पाँच-एक रुपए दिए होंगे, उस बेचारे का क्या गुनाह ? सुने हुए ज्ञान के आधार पर वहम वहीं से ढूँढ निकाला कि यह सब किसी प्रकार की कल्पनाएँ हैं। हमें कोई जैसा बताता है, वैसा ही दिखाई देने लगता है। लगा, 'यह हँसा, यह ऊँचा हुआ', वास्तव में कुछ था नहीं। रात को ग्यारह बजे लेकिन वह वहम क्यों हुआ? तो शायद वहाँ पर हवा होगी, अँधेरा होगा, तो हवा में कोई दियासलाई जला रहा होगा बेचारा, बीड़ी जलाने के लिए। बहुत हवा थी इसलिए बीड़ी जलाने की कोशिश कर रहा था, दियासलाई जलाता था और बुझ जाती थी। तो दो-तीन दियासलाई एक
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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