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________________ [10.6] विविध प्रकार के भय के सामने... 389 रहता है, इसलिए गटर में से बाहर नहीं आ सकते। जबकि पहले तो सीधे आ जाते थे। कल्पना की वजह से भाभी के भूत का भ्रम प्रश्नकर्ता : आपने कहा है कि भूत का भय लगता था, तो भूत को देखा था। दादाश्री : मैं तेरह साल का था तब मुझे बुखार आया था और दरवाज़े बंद करके बंद कमरे में बैठा हुआ था। सामने बहुत बड़ी अलमारी थी, और उसमें दरवाज़े नहीं थे। अंदर खाने बने हुए थे। तीन-चार खानों वाली अलमारी थी लेकिन दरवाज़ा नहीं था उसमें। एक बार आँख खुली तो सामने कुछ धुंधला सा दिखाई दिया, और वहाँ मेरी (पहली) भाभी दिखाई दीं। मुझे तो मणि भाई की पहली पत्नी दिखाई देने लगीं। मणि भाई ने पहले शादी की थी न, तो वे सूरज भाभी दिखाई देने लगीं और मैंने उनका बेटा भी देखा, बेटा और भाभी दोनों दिखाई दिए। मैंने कहा, 'ये कहाँ से आ गए वापस?' और वह भी बेटे को लेकर चढते-उतरते हुए दिखाई दिए। फिर वे उन अलमारी के खानों में पहली मंजिल पर चढ़े, फिर वापस बेटा दिखाई दिया, फिर दूसरी मंजिल पर चढ़े, तो बेटा दिखाई दिया। मैंने कहा, 'ये भूत हैं या क्या हैं ?' लोग कहते थे कि वे मरने के बाद भूत बन गई हैं। तो मुझे बुखार के चक्कर में ऐसा दिखाई दिया था। उससे मुझ में डर बैठ गया। ऐसी प्रतिष्ठा की थी इसलिए वह दिखाई दिया। भूत बन गए, वह ज्ञान हाज़िर हो गया और लोगों ने स्थापन की थी कि भूत है इसलिए दिखाई दिया। फिर तो मैं परेशान हो गया और भयभीत हो गया। फिर तो एकदम से आँखें मींचकर दरवाज़ा खोल दिया। फिर भूत का दिखना बंद हो गया। ये सभी कल्पना के भूत थे! हम जैसी कल्पना करते हैं न, वैसा ही दिखाई देता है। जिस बारे में सोचते हैं, वैसा ही दिखाई देता है। इससे समझना यह है कि हम जैसी प्रतिष्ठा करते हैं वह वैसा ही फल देती है। लोगों ने कहा था इसलिए दिखाई दिया महुडे में भूत मैं बिज़नेस करता था, तब वहाँ पर हमारा कॉन्ट्रैक्ट का काम चल
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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