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________________ [10.5] जाना, जगत् है पोलम्पोल प्रश्नकर्ता : दादा, आप जो कहते हैं न, तब ऐसा लगता है कि जैसे पिक्चर देख रहे हों ! 383 दादाश्री : इस तरह पिक्चर दिखाई दे, तो उसमें तो बहुत मज़ा आता है। सभी को ऐसा नहीं होता। लेकिन वह इस तरह से अचार की फाँक खींच रहा था और ढेबरू खाता जा रहा था और फिर चबाता जा रहा था। तब मैं छोटा था । तब मेरे मन में ऐसा हुआ कि, 'ये उनके ससुर होकर ऐसा कर रहे हैं ! ऊपर से ऐसे-ऐसे करके अचार खा रहे हैं ! अरे, भाई छोड़ न अचार, आज के दिन तो सीधा रह!' लेकिन नहीं रहते ये लोग ! मैयत में जा रहे हो फिर भी अचार क्यों खा रहे हो ? दो ढेबरे खाकर पानी पी लो न ! तो कहता है, 'नहीं, अचार तो खाना होगा। दो ढेबरे खाकर पानी पीएँगे तो नहीं चलेगा'। मैंने कहा, 'अरे! आपकी मैयत तो वैसी ही है !' वास्तव में मज़ाक किया है । नहीं ? प्रश्नकर्ता : मीठी मज़ाक है या क्रुअल (निर्दयी) मज़ाक है ? दादाश्री : इसलिए मैंने 'पज़ल' कहा, पज़ल ! अगर मज़ाक समझ में आ जाए तब तो लोग चिढ़ ही जाएँगे न ! 'मेरी मज़ाक उड़ाई ?' व्यवहार में सब खाते-पीते हैं और ऊपर से स्वांग करते हैं । इस स्वांग की वजह से भ्रांति नहीं जाती । स्वांग नहीं होना चाहिए, साफ-साफ होना चाहिए। फिर मैंने हमारी बा से बात की। उन्होंने कहा कि 'खाएँगे तो सही न, बेचारे! कहाँ जाएँगे बेचारे ?' मेरे मन में था कि लोग दिल के सच्चे होंगे। अब ऐसा हो तब ढेबरे या जो ऐसे कुछ रोटी - वोटी खा लेंगे तो नहीं चलेगा क्या उन्हें ? मैं तो समझ गया कि यह पूरा जगत् खोखला है। रखो न इसे एक तरफ ! यह तो, हम से ही भूल हो रही है । इसलिए ऐसे लोगों से सावधान रहकर चलो। उनके बहनोई की चिंता में मैं तो जाग रहा था और वे खर्राटे रहे थे मेरे दूसरे एक और परिचित व्यक्ति थे, मैं जब यहाँ से उनके गाँव
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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