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________________ 378 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) गया। तभी से समझ गया कि इस संसार में सोच-समझकर उतरने जैसा है। इसकी सीढ़ियाँ उतरने लायक नहीं हैं, यह जोखिम भरा है। यह जोखिम वाला जगत् है न? ये तो इन्डियन हैं, कच्ची माया नहीं हैं ! फॉरेन वाले तो इस पज़ल में घिर ही जाएँगे कि यह इन्डियन पज़ल किस तरह की है ? छाती पीटते हैं, लेकिन छाती में चोट नहीं लगने देते। हमारे देश की पज़ल तो देखिए ! यह इन्डियन पज़ल ऐसी है कि उसे और कोई सॉल्व नहीं कर सकता। वहाँ (फॉरेन) की पज़ल हम सॉल्व कर सकते हैं, लेकिन वे हमारी पज़ल सॉल्व नहीं कर सकते। लौकिक तरीके से सही है लेकिन उसका दुरुपयोग हो गया प्रश्नकर्ता : दादा, हम ऐसा दिखावा क्यों करते हैं ? दादाश्री : जब इंसान मर जाता है तब रोते क्यों हैं? तो कहते हैं कि 'उसके प्रति जो मोह था वह पिघल गया'। अब तो ऐसा कहते हैं कि 'भाई, रोने दो, रोने दो... ! रोने दो वर्ना उसके अंदर गुबार भर जाएगा'। इसलिए सब लोग मिलकर रुलाते हैं लेकिन अब उसका दुरुपयोग हो गया है तो अब रुलाते ही रहते हैं। जबकि कुछ समय के लिए ही रुलाना होता है। उससे फिर इन लोगों में रोना-धोना चलने लगा। अब क्या किया जाए? छाती तो पीटनी ही है लेकिन भाई छाती क्यों पीटते हो? यह लौकिक है। यदि इसके बारे में किसी से पूछे कि 'क्यों जाना है?' तो कहते हैं, 'लौकिक करने जाना है।' लौकिक अर्थात् दिखावा। वह तो सचमुच रोता है लेकिन हमें तो झूठ-मूठ रोना पड़ता है न? नहीं रोना पड़ता? लोग जब यहाँ आते हैं तब सचमुच भी रोता है, झूठ-मूठ भी रोता है लेकिन जब सभी बैठे हों तब उसे लौकिक कहते हैं। फिर भी लौकिक रूप से यह सही भी है, करेक्ट बाइ रिलेटिव व्यू पोइन्ट और अलौकिक अर्थात् रियल सही है।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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