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________________ ज्ञानी पुरुष ( भाग - 1 ) दादाश्री : फिर मेरी भाभी से कहा, 'ले, अब क्या करेंगे ? तू पी जा'। तो बल्कि उसे ज़्यादा पिला दिया । मुझे भाभी का और मेरा एक समान दूध नहीं चाहिए था, मुझे खुद को ज़्यादा चाहिए था, और बल्कि उसे ज़्यादा पिला दिया । ऐसा पागलपन नहीं होना चाहिए। उस दिन तो मेरा दूध गया। मैंने सोचा, 'अगले दिन सुबह डबल मिलेगा लेकिन उतना ही मिला। यह क्या हुआ ?' तो नुकसान हुआ । इसलिए अब मुझे फिर से ऐसा काम ही नहीं करना है जिसमें नुकसान हो । रूठना ही नहीं है न! दूध पीने के बाद रूठना है । अतः बचपन से ही मैं समझ गया कि रूठना अर्थात् नुकसान का धंधा । इसलिए अब नुकसान का धंधा बंद कर दिया, आड़ा नहीं होना है । 372 लगा कि नुकसान है तो रूठना हुआ बंद प्रश्नकर्ता : रूठना आड़ाई कहलाती है ? दादाश्री : और क्या, आड़ाई ही कहलाएगी न! हम हठ करें कि 'मेरा दूध इतना कम क्यों ?' अरे, छोड़ न ! पी ले न! अगली बार दे देंगे। यानी कि एक बार आड़ा हुआ, तो उसके बाद नुकसान हुआ । अतः मैंने सोचा कि ‘अब फिर से आड़ाई नहीं करनी है ' । वर्ना सब कहेंगे कि, 'रहने दो इसे !' उसके बाद ऐसा ही होगा न ! इसलिए फिर तभी से रूठना बंद कर दिया। अब किसी भी बात को लेकर रूठना नहीं है। उसके बाद कभी रूठे ही नहीं किसी से। अगर ठीक नहीं लगे तब भी नहीं रूठते थे। फिर से बुलाते कि चलो खाना खाने, तो मैं तुरंत चला जाता। फिर से पछतावा न करना पड़े, ऐसा सिस्टम प्रश्नकर्ता : आपने कहा न कि रूठे इसलिए हमारा दूध गया, तो वह किस उम्र में ? दादाश्री : वह था नौ-दस साल की उम्र में I प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, नौ-दस साल की उम्र में तो हमने भी कई बार इस तरह दूध खोया था । हम भी भूखे रहे थे, इसलिए ऐसा तो
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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