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________________ [10.3] ओब्लाइजिंग नेचर ठगे जाते थे, फिर भी औरों का काम करता था यह तो मैं अपने बचपन के जो गुण थे उनके बारे में मैं बताता हूँ। ओब्लाइजिंग नेचर। हाँ, मुझे ओब्लाइज करना बहुत अच्छा लगता था। मैं नौ साल का था तब घर से मुझे सब्जी लेने भेजते थे कि, 'जा, सब्जी लेकर आ'। तो मैं मार्केट में सब्जी लेने जाता था, जो कि चार फलाँग दूर था। हमारा मकान मुहल्ले में सब से आखिरी था तो घर से सब्जी लेने निकलते वक्त रास्ते में पड़ोसियों से पूछता-पूछता जाता था कि, 'मैं सब्जी लेने जा रहा हूँ, तो आपके लिए सब्जी लानी है कोई? आपके लिए लानी हो तो मैं ले आऊँ'। ऐसा सब से पूछता था। ___ तो मुझे ऐसा होता था कि अगर सिर्फ अपना लेकर आऊँ तो टाइम बेकार जाएगा। इसके बजाय आसपास वालों से सब से पूछकर उनके लिए भी सब्जी वगैरह ले आता था। पैसे-वैसे तो अपने पास होते थे तो दे देते थे, वर्ना वे देते थे। सभी का हिसाब रखता था। उसमें से बिल्कुल भी पैसा नहीं लेता था। बल्कि पैसा डालता था, ताकि मुझ पर आरोप न लगे। उनके मन में शंका न हो इसलिए मैं नुकसान उठाता था। यों मैं भला इंसान था न, इसलिए नुकसान उठाता था। नुकसान उठाता था यानी कि घर के पैसे डालकर काम कर देता था। मैंने पूरी जिंदगी औरों के लिए ही बिताई है। मेरे खुद के लिए कभी भी नहीं बिताई। मुझे घर से एक काम करने को कहा जाता कि पोस्टकार्ड डालकर आ जा, तो सभी आसपास वालों से पूछ लेता था कि 'भाई, मैं पोस्ट ऑफिस जा रहा हूँ, आपको कोई चिट्ठी डालनी है?'
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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