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________________ [10.2] ममता नहीं वहाँ पर खाता ज़रूर था लेकिन घर पर नहीं ले जाता था मुझे बचपन से ही एक ऐसी आदत थी कि किसी भी चीज़ की पोटली बनाकर नहीं लाता था। मैं बचपन से ही दोस्तों के साथ खेतों में जाता था। तरह-तरह के खेल खेलता था। हम सब पाँच-छ: दोस्त, बनिए-पाटीदार सभी, हमारा पूरा सर्कल घूमने जाता था बाग में और खेत में। वहाँ पर मोगरी बोई हुई होती थी, किसी के खेत में मूली बोई हुई होती थी, किसी के खेत में आलू बोए हुए होते थे, सौंफ होती थी। फिर हम सब तो, अगर मोगरी होती थी तो मोगरी खाते थे और तरह-तरह की मूली और शक्करकंद वगैरह बहुत खाए हैं। फिर बाकी सब बाँधकर लाते थे इतना-इतना, सब्जी की चोरी करके लाते थे। मुझे बचपन से एक आदत बहुत अच्छी थी, उनके खेत में चाहे कहीं भी ले जाएँ, तो मैं जाता ज़रूर था सब के साथ, लेकिन मैं घर पर कभी भी बाँधकर नहीं लाता था। कभी भी घर पर कुछ नहीं लाया। वहाँ पर जितनी मोगरी खाई उतनी, उनके खेत में भुट्टे होते थे तो एकाध खा ज़रूर लेता था। वहीं पर खा लेता था, लेकिन मैं उठाकर घर पर नहीं लाता था। हमारे दोस्त कहते थे कि, 'पूड़ा तो ले लो'। मैं कहता था कि, 'नहीं, मैं तो कभी एक बैंगन भी न लूँ। मैं न छूऊँ कभी भी'। फिर जो मूल मालिक होता था न, वह थोड़ा-बहुत बाँधकर घर पर दे जाता था। ममता नहीं थी इसलिए जगत् दिखाई देता था जूठन समान हमारे कुछ ध्येय बहुत उत्तम थे। पोंक (ताज़े अनाज के हरे दाने) खाने गए थे बाजरे का। अपने यहाँ दूसरा और कौन सा पोंक होता है?
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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