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________________ 356 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) सामान्य इंसान लाचारी का अनुभव करता है। यदि उसे तीन दिन तक भूखा रखा जाए न, तो लाचारी का अनुभव करता है। अतः असामान्य बनना है। फिर खुद के सुख का अंत ही नहीं रहेगा। यह तो खुद ही रुक गया है। अभी तो किसी बड़े इंसान को देखता है तो लघुताग्रंथि उत्पन्न हो जाती है और उससे प्रभावित हो जाता है। अरे! जब वही सामान्य मनुष्य है, तो उससे क्या प्रभावित होना? नहीं माफिक आया कपट, सरलता थी पहले से ही प्रश्नकर्ता : शुरुआत से आपका स्वभाव कैसा था? दादाश्री : बचपन से ही मेरा दिल झूठ-कपट, लुच्चाई, चोरी, लोभ वगैरह के लिए मानता ही नहीं था। मुझ में तो बचपन से ही मन-वचन-काया की एकता थी। जो मन में रहता था, वही वाणी में और वर्तन में आ ही जाता था। फिर भी एक-दो बार कपट हो गया था, लेकिन उससे अंदर बिगड़ा न! याद किया कि क्या खाया था जो ऐसा हो गया! उसके बाद समझ गया कि यह कपट हमारी प्रकृति को माफिक नहीं आता है तो छोड़ दिया लेकिन मन बचाव कर रहा था, तब पता लगाया कि यह कौन है? तब पता चला कि बुद्धि मन को सपोर्ट कर रही है और अहंकार बुद्धि को सपोर्ट कर रहा है। मुझ में बचपन से ही सरलता, निर्लेपता, निष्कपटता थी और चरित्र अच्छा था और कुछ चीजें खराब भी थीं। अहंकार बहुत ज़बरदस्त था। "अंबालाल भाई' इन छः अक्षरों के बजाय कोई 'अंबालाल' कहकर बुलाए तो भारी अहंकार खड़ा हो जाता था। दुश्मनों को, पूरे देश को जलाकर रख दूँ, इतना पावर था। वह पावर कैसा था कि यदि ज्ञान नहीं हुआ होता तो नर्क में ले जाता। भगवान का भी सहन नहीं हो सकता था, लेकिन हम में सरलता बहुत ही थी। माँ जी के दिए हुए संस्कार बहुत अच्छे थे। हम में सभी तरह के रोग भरे हुए थे। ज्ञान के बाद हम निरोगी हो गए।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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