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________________ [9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे 351 होगी न! फिर भी, एक व्यक्ति जिसे मैंने अपनी पुस्तकें दी थीं, वे वह वापस दे गया। प्रश्नकर्ता : पुस्तकें वापस दे गए? । दादाश्री : हमारा एक भतीजा था न, तो मैंने उसे यह ज्ञान दिया। बहुत कठोर था और क्रोधी था। मैंने ज्ञान दिया, उन दिनों उसने क्या कहा? "आज रात को बड़ा नाग आया मेरे सामने। आकर एकदम फन फैलाने लगा। तब मैंने कहा, 'मैं शुद्ध हूँ, शुद्ध हूँ', तो वह चला गया।" तब मैंने कहा, 'जो कुछ भी था, वह सब अब बाहर निकल गया'। उसके बाद उसे पुस्तकें दी, सबकुछ दिया। फिर साल-दो साल तक उसने यह सब किया, दर्शन किया, यह सब किया। फिर किसी ने उसे बताया कि 'यह सब तो जैन धर्म है। उसे कोई गुरु मिल गए, तो उसे मन में ऐसा हुआ कि, 'यह जैन धर्म अपने घर में?' पत्नी से पूछा कि, 'यह जैन धर्म है?' तब उसने कहा कि, 'अपना वैष्णव धर्म है और वह भी फिर बालकृष्ण वाला धर्म है'। फिर उसने मुझसे कहा, 'लीजिए ये आपकी पुस्तकें वापस और यह आपका धर्म और आपका ज्ञान भी आपको वापस'। उसके बाद मेरे मन में ऐसा आया कि, 'भाई, उसका उपकार मानो'। मैंने कहा, 'उसका अच्छा हो। यह भला आदमी है, वर्ना रास्ते में या गटर में डाल देता। उसके बजाय यहाँ आकर सारी पुस्तकें उसने वापस लौटा दीं। वर्ना अगर वह यों ही फेंक देता तो कौन मना करता?' तो 'यह ज्ञान भी आपको वापस दिया' कहा। क्या कहा? ऐसा है यह जगत् तो! __ प्रश्नकर्ता : अब ऐसा कोई नहीं कहता, दादा। अब कोई भी ऐसा नहीं कहता होगा। दादाश्री : अब तो ऐसा नहीं कहते, लेकिन पहले ऐसा कह गया था। सभी भतीजे-वतीजे यहाँ आ जाते हैं लेकिन हम किसी से कुछ नहीं कहते। वे तो हिसाब वाले हैं, तो चीकणा (अत्यंत गाढ़) किसके साथ होता है? जिसके साथ ज़्यादा रहते हैं वहीं पर चीकणा होता है न, या दूर वालों के साथ? दूर वालों से तो 'जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण',
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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