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________________ 346 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) अत्यंत गुस्सा, यों चलते-चलते भी मुझे गुस्सा आ जाता था। यों अहमदाबाद की पोल में घूमने आया और अगर लोग मेरी हॉकी पकड़ लें तो मुझे गुस्सा आ जाता था, समझ गए? सभी परेशान हो गए थे। इन दादा ने रखा... दादाश्री : ऐसा है न, मैं जानता था कि यह असली हीरा है। लेकिन इसमें खराबी आ गई है, लेकिन अगर इसे तराशेंगे तो ठीक हो सकता है, जबकि लोग तो निकाल देते हैं। मैंने इसे तराशा। उसके बाद एकदम ऑल राइट। यह असली हीरा है न! है असली माल, इसलिए। क्योंकि पहले ही दिन इसने मुझसे कहा था कि, 'दादा आप रखिए, वर्ना फिर मुझे दरिया में फेंक देना'। प्रश्नकर्ता (कांति भाई): और मेरे मदर-फादर ने तो कहा था कि, 'हमारे घर पर तो लाना ही मत'। दादाश्री : मैंने कहा था, 'समुद्र में नहीं फेंक सकते'। लेकिन अच्छा है, यह तो ठीक हो गया। अच्छे-खराब के सर्टिफिकेट में भी समभाव से निकाल प्रश्नकर्ता : दादा, ज्ञान होने के बाद परिवार के लोगों के साथ का व्यवहार कैसा था? दादाश्री : हमारा एक भतीजा है, वह भरुच टेक्सटाइल मिल का सेठ था। उसने कहा, 'चाचा, जैसे आप पहले थे, उससे तो अभी बिगड़ गए है। चाचा कितने अच्छे इंसान थे और यह धर्म के चक्कर में पड़ने से बिगड़ गए'। तब मैंने उसे क्या कहा? 'तू बड़ा आदमी है इसलिए तुझे इसमें कुछ समझ नहीं आएगा। मैं पहले से ऐसा ही था लेकिन तुझे पता नहीं चला। मैं तो जानता हूँ न कि मैं कैसा था! यह तो बहुत ही विषम इंसान है तेरा चाचा तो!' उसने कहा, 'लेकिन पहले ऐसे नहीं थे न?' मैंने कहा, 'नहीं, शुरू से ऐसा ही था लेकिन आपको पता नहीं था। मैं इसके साथ ही साथ रहता हूँ न!' तब उसने कहा, 'ऐसे क्या कह रहे हैं?' मैंने कहा, 'इसे शुरू से ही जानता हूँ। पहचानता हूँ तेरे चाचा को',
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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