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________________ ज्ञानी पुरुष ( भाग - 1 ) माल होता था सारा। दो-चार मन ( एक मन अर्थात् 20 किलोग्राम), पाँच मन वज़न होता था तो उसका वज़न करके इस प्रकार से उसे लाना चाहिए। हमने कहा कि, 'तेरा जितना खर्च हो उतना, उसका लगेज (किराया) भरना'। लेकिन लगेज भरे बगैर मार- ठोककर माल ले आता था। टिकट कलेक्टर से झगड़ा करता था और बवाल मचा देता था । स्टेशन मास्टर जी से झगड़ा और जहाँ देखो वहाँ झगड़ा, झगड़ा और झगड़ा! रेल्वे में भी मारामारी करता था । यों तो पैसे पानी की तरह बहाता था लेकिन नियमानुसार रेल्वे के जो पैसे भरने होते थे, वह नहीं भरता था और ऊपर से झगड़ा करता था । इसलिए फिर मेरे पास शिकायतें आती थीं कि, 'आपके भतीजे को निकाल दो, यह आपकी इज़्ज़त बिगाड़ रहा है'। 336 'टकराव टालना' सूत्र प्रकाश में आया इस प्रकार से तब मैंने कहा कि, ‘भाई, मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है कि तू मेरी इज़्ज़त बिगाड़ रहा है? यदि तुझे आबरू बिगाड़नी है, तो तू चला जा' । तब फिर उसने मुझसे कहा कि, 'दादा, मुझे कोई धर्म दीजिए, मुझे इन सब बातों में सूझ नहीं पड़ती। आप रोज़ पुस्तकें पढ़ते हैं। मुझे ऐसा कुछ दिखाइए कि मेरे आत्मा का कल्याण हो !' तब मैंने उससे कहा कि, 'तुझे सिखाकर क्या करना है ? तू तो सभी के साथ टकराता है'। सरकार में दस रुपए भरने पड़ें, उतना सामान लाता है फिर भी पैसे भरे बगैर लाता है और यों लोगों को बीस-बीस रुपए का चाय-नाश्ता करवा देता है! तो उससे वे लोग खुश हो जाते हैं। दस बचते नहीं हैं, बल्कि दस रुपए ज़्यादा खर्च हो जाते हैं, ऐसा नोबल आदमी है। मैंने कहा, 'अरे, तुझे क्या करना है ? तेरा कल्याण हो चुका है ! और कितने ही लोगों को मारकर आता है, क्या वह कम है ?' तब उसने कहा, 'मेरे आत्मा का भी कुछ होना चाहिए न ! मुझ पर कुछ कृपा कीजिए'। तब मैंने कहा, 'देख, मैं तुझे एक पुड़िया देता हूँ, पालन करेगा?' उसने कहा, 'मर जाऊँगा लेकिन उस पुड़िया को छोडूंगा नहीं'। मैंने कहा, 'बस ! किसी के साथ टकराव में मत आना, इतनी
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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