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________________ 334 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) लिखना। तू अगर सिगरेट पीए तो भी लिखना, दारू पीए तो भी लिखना'। मैंने उसे छूट दी थी कि 'मैं तुझे डाँट्रॅगा नहीं लेकिन तुझे सुधारूँगा'। फिर भी क्या वह लिख लेता? उसके बाद धीरे-धीरे मैंने पता लगाया। मैंने कहा, 'इसका क्या है ?' हमारे भागीदार से मैंने कहा, 'चाहे कितने भी पैसे खर्च हों लेकिन इस लड़के को सुधारो। वह अपने खुद के अनंत जन्म बिगाड़ देगा और शक्ति तो है, इधर मोडेंगे तो सीधा चलेगा'। उसके बाद हमारे भागीदार ने तय किया कि, 'चाहे बारह महीनों में पाँच हजार बिगड़ें तो बिगड़ें लेकिन हमें इसे सुधारना है'। ढूँढ निकाला कि यह तो मेरे पैसों का सदुपयोग करता है फिर पता लगाया। तब उसका क्या हिसाब मिला? हर एक व्यक्ति ने मुझसे कहा कि, 'आपका भतीजा बहुत अच्छा इंसान है। बहुत ही नोबल माइन्ड वाला है'। मैंने पूछा, 'ऐसा? हमारा भतीजा नोबल है? आपको ऐसा कैसे लगा?' तो कहा, "हमें देखते ही वह कहता है 'आइए, आइए, आइए, चाय पीजिए' कहता है, और ऐसा है कि स्टेशन की होटल में बीस लोगों को चाय पिला देता है।" मैंने कहा, 'वह तो समझदार है'। तब मुझे यह बात पकड़ में आई। मैं ढूँढ रहा था कि 'पैसे किसमें जाते हैं? कहाँ खर्च करता है?' तो मुझे यह अच्छा लगा। अच्छा है, लोगों को चाय पिलाता है। मेरे पैसों का सदुपयोग करता है। फिर पता लगाने पर मुझे ऐसा लगा कि यह अभी तक खुद पर खर्च नहीं कर रहा था। 'ओहोहो! आपने तो मुझे कई बार नाश्ता करवाया है। तो लोग उसकी 'वाह, वाह' करते थे। यह सब वह लोगों के लिए करता था। वह तो ढूँढने पर पता चल गया। अन्य कोई गलत रास्ता नहीं था कि ब्रान्डी या ऐसा कुछ। किसी तरह की बुरी आदत नहीं थी इसलिए फिर मैंने लेट गो किया। मैंने कहा, 'अब चाहे उल्टा-सीधा लिखे तब भी मुझे हर्ज नहीं है'। क्योंकि अगर मैं उसे यह कहता कि, 'तू यह अच्छा कर रहा है' तो उसे एन्करिजमेन्ट मिलता और वह पूरे गाँव को चाय नाश्ता करवाता। उससे अपना काम धंधा रुक जाता। मुझे तो जो जानना था वह ढूँढ निकाला।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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