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________________ [9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे 331 'पधारो' कहें न, वे खुश हो जाते। बाकी, मर जाएँ तब भी माँगना नहीं। पानी नहीं हो फिर भी माँगना नहीं है, तो क्या वह कुछ कम बात है? हमें निर्भय बना दिया', रणछोड़ भाई को समझाया, तब फिर रणछोड़ भाई ने कहा, 'मुझे भी आपकी यह बात पसंद आई। उसमें भी गुण तो हैं न!' मैं पैसे देता था कि जिसे ठगा है उसे वापस देकर आओ प्रश्नकर्ता : 'टकराव टालिए' वह सूत्र आपने सब से पहले अपने भतीजे को दिया था, वह बात बताइए। दादाश्री : हुआ ऐसा कि 1951 में कोसबाड़ एग्रिकल्चर कॉलेज बन रहा था, उसका कॉन्ट्रैक्ट लिया था। कोसबाड़ करके एक एग्रिकल्चर फार्म था, वहाँ खेतीबाड़ी का कॉलेज बन रहा था। नीरू माँ : वह जो सूरत के पास कोसमाड़ा है, वह ? दादाश्री : नहीं, कोसमाड़ा नहीं, कोसबाड़। उस समय 1951 में कांति भाई को यह आज्ञा दी थी कि, 'टकराव टालना'। तो अभी भी वे उसका पालन कर रहे हैं। नीरू माँ : तब तो आपको भी ज्ञान नहीं हुआ था। दादाश्री : लेकिन ऐसा व्यवहारिक ज्ञान था सारा । व्यवहारिक ज्ञान तो बहुत था। व्यवस्थित तो मुझे उन दिनों समझ में आ गया था। इस आत्मा के ज्ञान के अलावा बाकी का अनंत जन्मों का अनुभव ज्ञान साथ में आया है। लेकिन यह वाक्य कैसे निकला कि, 'किसी के साथ टकराव में मत आना!' वह पूरी बात बताता हूँ। हमारा एक भतीजा था। भतीजा यानी कि हमारे चाचा के बेटे का बेटा। वह बिगड़ गया था। ज़रा तेज़ स्वभाव वाला और उल्टे रास्ते चला गया था। तो उसके फादर मेरे यहाँ आए, वे अपने बेटे को लेकर आए थे। मैंने उनसे कहा, 'आपके बेटे को बाहर खड़ा रखो और आप यहाँ आओ'। तब बेटे को
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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