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________________ [9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे 323 मेरा हिस्सा रखना पड़ेगा। तो तुरंत ही, क्या हुआ है और यह इंसान ऐसा कैसे कह रहा है, मुझे पूरा इतिहास दिखाई दिया। यह इंसान ऐसा कह रहा है कि कॉन्ट्रैक्ट में हिस्सा देना पड़ेगा! मैंने कहा, 'हाँ भाई'। मैं समझ गया कि यह ऐसा नहीं कह सकता। उसे खुद को ऐसे स्वार्थ वगैरह की समझ नहीं है। उसे खुद को ऐसे स्वार्थ की इच्छा नहीं है क्योंकि यह ऐसा कर ही नहीं सकता। लोगों ने, किसी ने इसे पट्टी पढ़ा दी है। मैं जानता हूँ किसी ने ऐसी अंटी (गांठ) डाल दी है, इस अंटी को निकालना मुश्किल हो जाएगा। प्रकृति को पहचानकर बोधकला से लिया काम प्रश्नकर्ता : वह तो मुझे भी कहा था, 'यह सिर्फ आपका नहीं है, मेरा हिस्सा है। दादाश्री : हाँ, आपको तो वे ऐसा ही कह रहे थे कि 'मेरी ही मालिकी है, मैं ही इसका मालिक हूँ। यह बात सुनने जैसी है। तब बा को एकदम धक्का लगा कि, 'हाय हाय, यह भागीदारी की बात कर रहा है'। और यह भाई तो ऐसा कह रहा है कि, 'तुझे हिस्सा दूंगा'। मैंने कहा, 'तु तो भतीजा लगता है, तुझे तो सब से पहले हिस्सा देना पड़ेगा। वर्ना और किसे हिस्सा दूंगा?' तब उसने कहा, 'तो चाचा, हम साथ में खाना खाने बैठे?' तब मैंने कहा, 'बैठ, चल'। फिर जब उसने तीन रोटियाँ खा लीं तब मैंने कहा, 'एक-दो रोटियाँ और खा ले। फिर हमें काम पर जाना है और फिर वहाँ जाकर क्या करना है? तुझे कुछ लोग दिए जाएंगे और उन लोगों की तुझे देखरेख करनी है, उन्हें पैसे देने हैं। जो भी खर्चा हो उसका तुझे हिसाब रखना है। हमारे पास दो काम हैं एक वाघोड़िया के सामने हैं, वह स्टेशन से चार मील की दूरी पर है और दूसरा साढ़े पाँच मील की दूरी पर है। तुझे कौन सा ठीक लगेगा? चार मील वाला या साढ़े पाँच मील वाला?' उसने कहा, 'मैं चलकर नहीं जा सकूँगा'। तब मैंने कहा, 'भाई, कॉन्ट्रैक्ट के काम में तो चलकर जाना पड़ता है'। तब उसने कहा, 'नहीं, वह
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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