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________________ [9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे 317 हमारा मकान बनाया। अभी बारह महीने में लाख रुपए कमाता है। ऐसा होता है! उस भाई की छ:-छ: बेटियाँ। कैसे शादी करवाए? लेकिन लोगों को कोई न कोई मिल आता है न! और फिर लोगों से क्या कहते हैं ? कि मेरे भाई 'भगवान' हैं। शुरू से ही, आज से नहीं। मुझे ज्ञान नहीं हुआ था तब भी वे कहते थे, 'भाई, मैंने आपको सौंप दिया है तो मेरा सबकुछ ठीक हो जाएगा। भाई, आप जो भी करोगे वह सही है। मुझे तो कुछ भी नहीं आता है'। उसने सब सौंप दिया इसलिए सब लाइन पर आ गया। लोग भी कहते हैं, 'आपको सौंपा तो उसका काम हो गया और जिन्होंने नहीं सौंपा था, वे सभी भाई रह गए'। ऐसा है यह तो! जो पकड़ा जाता है वह नहीं, जो नहीं पकड़ा जाता वह चोर यदि आपका भतीजा ऐसा होता कि जिसने पहले कभी भी किसी की जेब से पैसे नहीं लिए लेकिन अब एक दिन वह व्यक्ति जेब से दो सौ रुपए निकालकर ले गया और अपने घर में कोई व्यक्ति उसे देख ले और फिर घर का मानकर उससे पूछे कि 'तूने दो सौ रुपए लिए है?' तब वह कहता है, 'नहीं, मैंने नहीं लिए'। तो हम समझ जाएँगे कि 'यह लड़का ऐसा नहीं है कि कभी पैसे ले ले'। यानी कि संयोगवश। किसी संयोग में फँस गया लगता है। अतः हमें उसे 'चोर' नहीं कहना चाहिए, जबकि इस हिंदुस्तान के सभी लोग उसे 'चोर' कहते हैं। जो संयोगवश पकड़ा गया उसे 'चोर' कहते हैं। अरे पागल! ऐसे कैसे इंसान हो? जो नहीं पकड़े गए, वही चोर हैं। सचमुच के चोर तो पकड़ में ही नहीं आते। ये संयोगवश वाले (चोर) पकड़े जाते हैं बेचारे। सचमुच का चोर तो आँख में धूल डालकर चला जाता है। अतः संयोगवश बने चोर को हम चोर नहीं कहते हैं। संयोगवश किसी व्यक्ति ने अगर चोरी की तो उसके चरित्र में कोई बदलाव नहीं हो सकता। क्योंकि हम सिर्फ इतना ही देखते हैं कि संयोगवश और परमानेन्ट, उन दोनों में से यह व्यक्ति किस जगह पर है।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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