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________________ 310 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) दादाश्री : हाँ। हर दूसरे-तीसरे दिन ऐसा ही। जब कभी दस का नोट कम हो जाता था तब मैं समझ जाता था कि और कोई नहीं लेता है सिर्फ यह भाई ही ले जाता है। अंदर यदि अस्सी पड़े होते थे, तो उनमें से दस या बीस, जितनी ज़रूरत होती थी उतने लेकर बाकी के साठ रहने देता था। तब मैं समझ जाता था कि साठ बचे हैं इसलिए अपने शंकर भाई होने चाहिए, और कोई नहीं हो सकता। मुझे तो बहुत याद रहा करता था। मुझे तो ध्यान रहता ही था कि मेरी जेब में क्या है इसलिए स्पष्ट नहीं करता था। ये दादा तो भगवान जैसे हैं फिर एक दिन जब सब इकट्ठे हुए तब उन्होंने कहा, 'मैं तो कभी-कभी, जब मुझे ज़रूरत होती थी तब पैसे भी निकाल लेता था। वापस ऐसा खुलकर बता भी दिया। प्रश्नकर्ता : और फिर उन्होंने कहा कि, 'मैं तो यही समझता था कि दादा को पता नहीं चलता'। दादाश्री : हाँ, ‘दादा को सब पता चल जाता था'। प्रश्नकर्ता : लेकिन फिर जब उन्हें यह पता चला कि दादा को तो पता चल जाता है लेकिन कुछ कहते नहीं हैं, तब उन्हें लगा कि ये दादा तो 'भगवान' जैसे हैं। दादाश्री : उन्होंने मुझसे कहा कि, 'भाई, क्या आपको मालूम है कि मैं आपकी जेब से पैसे निकाल लेता हूँ ?' तब मैंने कहा, 'भाई, सब जानता हूँ। तुझे जितने चाहिए उतने निकाल लेना'।। ___ तो वह पैसे निकाल लेता था लेकिन हम उस पर चिढ़े नहीं, उसे कुछ भी नहीं कहा, उसे टोका भी नहीं। जैसे कि उसे लाइसेन्स दे दिया हो न, ऐसा रखा। क्या किया? प्रश्नकर्ता : पता ही नहीं चलने दिया कि आपको मालूम है। इससे तो दादा उसका हृदय परिवर्तन हो जाए।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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