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________________ [9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे 299 प्रश्नकर्ता : बिना तौले, बिना नापे। दादाश्री : हाँ, बिना तौले और बिना नापे। हमारा एक भतीजा था। वह जब भी आता था न, तब वह कुछ न कुछ बोलते हुए ही आता था। इसलिए जब उसके जाने का समय होता था तब मैं कहता कि, 4 'आप अपनी पोटली ले जाओ। वहाँ रखी है !' तब वह कहता था, 'पोटली में तो कुछ भी नहीं है, वह तो सिर्फ थैली ही है'। मैंने कहा, 'लेकिन अंदर सामान था न !' वह जो उसका बिना तौले- बिना नापे दिया होता था न, तो मैं वापस उसमें रख देता था, मैं उसे कहाँ संभालकर रखूँ? मैं उसका चाचा लगता था, लेकिन वह मुझे बिना तौले दे देता था। अब क्या हो सकता है ? चाचा बने हैं तो ऐसा बोलता ही न ! यदि कोई बाहर वाला ऐसा बोले तो मारते या फिर उससे झगड़ा करते या किसी भी तरह उसका निपटारा करते लेकिन इसमें तो अपने से कुछ नहीं हो सकता था। प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, स्वीकार नहीं करेंगे तो वापस उसी को मिलेगा न ? यदि सामने वाला स्वीकार नहीं करेगा तो किसके पास जाएगा? देने वाले के पास ही चला जाएगा न ? दादाश्री : वह अलग बात है, वह ज्ञान की बात हो गई । उन दिनों ज्ञान की बात नहीं थी न ! यह तो तब की बात है जिन दिनों मेरी उम्र पच्चीस साल थी। लेकिन इतना समझ गया था कि चाहे कुछ भी हो लेकिन जिनकी दुकान में जो माल है, लोग वही देंगे। वे बेचारे जो भी देते हैं, उसे रख देते थे फिर और (उनके) वापस जाते समय कहते थे कि, ' ले जा तेरा' । प्रश्नकर्ता : वह ठीक है, वापस दे देने की बात । दादाश्री : बेकार ही, यह बिना तौल वाला । आपको कोई देकर गया है बिना तौले ? प्रश्नकर्ता: नहीं, अभी तक तो नहीं दिया । दादाश्री : तो ठीक है। बाकी, यह दुनिया तो बिना तौले दे जाती है।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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