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________________ 296 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) चचेरे भाईयों में थी ज़बरदस्त स्पर्धा प्रश्नकर्ता : चचेरे भाई थे तो क्या इसलिए ऐसा सब चलता ही रहता था? दादाश्री : ये सब चचेरे भाई हैं। चचेरे भाई का मतलब क्या? कुटी हुई राई। रायते में डालना पड़ता है न? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : तो जिसमें डालो, उसमें उनका स्वाद आ जाता है। नहीं देखा? आपके चचेरे भाई तो अच्छे होंगे, हमारे चचेरे भाईयों को तो अगर आपने देखा हो तो पता चल जाता। हाँ, हमारे पटेलों में चचेरे भाईयों में तो बहुत स्पर्धा रहती है, ज़बरदस्त। उनसे मैं बड़ा और मुझसे वे बड़े, ऐसी ही स्पर्धा... हमारे एक चचेरे भाई मिल मालिक थे न, भरुच मिल वाले. तो उन्होंने कहा कि, 'दादा, आप तो भगवान बन गए और यह सब....' यानी कि वे पैसों के बारे में मुझसे स्पर्धा करने जाते थे। खून एक था न इसलिए जोश आ जाता था उन्हें, 'हम उनसे कम नहीं हैं। इसलिए मुझसे कहा, 'अभी उसे एक लाख दिए है। और पाँच लाख दूसरे को देने हैं। मैंने कहा, 'आप तो सेठ इंसान हो इसलिए आप दे सकते हो। मेरे पास लक्ष्मी आई ही नहीं इसलिए मैं नहीं दे सकता'। मैंने कहा, "भाई, देखो! आप तो करोड़पति हो और मैं तो जैसे-तैसे करके, अपना यह कॉन्ट्रैक्ट का काम करके दिन गुज़ारता हूँ। हमारे पास करोड़ों नहीं हैं। मेरी आपसे कोई स्पर्धा नहीं है। अगर आप कहो कि 'आपके पास नहीं है तो मैं कहूँगा, 'नहीं है। और अगर आप कहोगे कि 'आपके पास है तो मैं कहूँगा, 'है'। मुझे आपसे कोई तमगा (मेडल) नहीं लेना है, मुझे तो भगवान से तमगा लेना है। मेरे पास जो है वह आपके पास नहीं है और उसमें मैं कोई स्पर्धा नहीं करना चाहता। क्योंकि मैं तो पूरे जगत् का शिष्य बनकर घूम रहा हूँ। मैं किसी का गुरु बनने के लिए नहीं घूम रहा।" यानी कि मैं तो सही बात कह देता हूँ। ऐसा रखता हूँ ताकि वे इस तरह मुझसे स्पर्धा नहीं करें लेकिन फिर भी स्पर्धा छोड़ते नहीं हैं न! ये मेरा नाम
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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