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________________ 294 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) जान-बूझकर नहीं करता लेकिन हो जाता है, अगर सामने वाले को करना हो तो हो जाता है। हमें नहीं करना होता, लेकिन सामने वाले को करना होता है। भतीजे बड़े लेकिन विनय बहुत रखते थे हमारा ये तो, कुछ क्षण बाद कुछ भी नहीं। इनके (भतीजे के) फादर (कज़िन ब्रदर) से मैं बहुत लड़ता था। वे लोग यह सब देखते थे। बीस साल बड़े थे फिर भी ऐसे-ऐसे शब्द कह देता था। प्रश्नकर्ता : बीस साल बड़े थे। दादाश्री : सभी भतीजे बहुत लायक थे। ये तो एक अक्षर भी नहीं बोलते थे। ऐसा विनय कहाँ से लाएँ ? एक-दो लोग तो मुझसे भी बडे थे, रावजी भाई छोटे थे। 'दो भाई बोल रहे हों तो हमें बीच में नहीं बोलना चाहिए' ऐसा कहते थे और हमारे भाई भी कहते थे, 'ऐ! क्यों बोला? हम दोनों चाहे कुछ भी बोलें'। मेरे भाई जैसा भाई किसी को भी नहीं मिलेगा। प्रश्नकर्ता : वह तो मैंने देखा है दादा। उस दिन जब आप आए थे न, तब रावजी चाचा पास में बैठे हुए थे। फिर वल्लभ चाचा आए तो वे उठकर एक तरफ चले गए। रात को भी ऐसा किया कि जब वल्लभ चाचा आए, तब खुद उठकर उन्हें जगह कर दी। दादाश्री : हाँ, भतीजे लगते हैं लेकिन मुझसे तीन साल बड़े हैं न! प्रश्नकर्ता : आपके लिए तो जगह बना दी लेकिन वल्लभ चाचा के लिए भी बना दी। दादाश्री : बना ही देंगे न, वल्लभ भाई बड़े हैं न! उनके फादर, जब कहीं शादी वगैरह होती थी न, तब उनके फादर के खाना खाने के बाद मेरी बारी आती तो हम पूछे बगैर नहीं बैठते थे। हमें वहीं बैठने जाना पड़ता था।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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