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________________ [8.4] भाभी के उच्च प्राकृत गुण 289 दिवाली बा : उन्हें तो फिर पाँच-छः साल बाद लेकर आए थे। शादी के वक्त उनके पिता जी ने पैसे कम दिए थे। मेरे ससुर ने दो हज़ार का दहेज तय किया था उस समय। कितने साल हो गए उस बात के तो! उस समय दूध दो आने किलो था, एक आना ही, दो आने भी नहीं, एक रुपए का दो सेर-ढाई सेर घी मिलता था, भैंस का। उनकी शादी के वक्त ऐसा सब था। मैं उनके भाई की दूसरी पत्नी थी। मेरे साथ उन्हें (अंबालाल को) पहले से ही बहुत जमता है, भाई-बहन की तरह रहे हैं। दादा और उनकी भाभी के बीच का वार्तालाप दादाश्री : मूलजी भाई संवत तिरासी (संवत 1983, ईसवी सन् 1927) में चले गए। मणि भाई 1940 में चले गए और बा, मेरी उम्र जब अड़तालीस साल की थी तब 1956 में चले गए। हीरा बा भी 1986 में चले गए। प्रश्नकर्ता : दिवाली बा कहती हैं कि, 'अब, जब मैं जाऊँ, तब आप आना'। दादाश्री : ऐसा तो कहीं होता होगा? वह तो आप सब को भेजकर फिर जाएँगी। मैंने कहा, 'आपको जाना हो तो मुझे भेजकर जाना... उसमें हर्ज क्या है ? मैं तो जी ही रहा हूँ। मैं कभी मरूँगा ही नहीं न! हीरा बा भी नहीं मरे हैं। प्रश्नकर्ता : ऐसा कहती हैं, 'आत्मा कहाँ मरता है ? आत्मा मरता ही नहीं है। दादाश्री : बस। प्रश्नकर्ता : वे कहती हैं, 'मैं मर जाऊँ, तब आप भादरण आना'। दादाश्री : आप पहले मरोगे? अरे! आप तो रहना न, शरीर अच्छा है आपका। क्या दुनिया में अच्छा नहीं लगता? दिवाली बा : भगवान का आसरा है इसलिए अच्छा लगता है।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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